दिल्ली (रविंद्र आर्य): दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया (मावलंकर ऑडिटोरियम) में एक अद्भुत और प्रेरणादायी आयोजन हुआ — “Creators Meet — Divine Souls Unite”, जिसका उद्देश्य केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि आत्मा और सृजन की संगमस्थली बनना था। इस आयोजन में देशभर से आए रचनाकारों, लेखकों, पत्रकारों, सोशल मीडिया क्रिएटर्स और विचारशील नागरिकों ने भाग लिया। मंच पर आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र बने पूज्य बाबा बागेश्वर धाम सरकार ने अपने दिव्य सान्निध्य से कार्यक्रम को आभामय बना दिया। बाबा बागेश्वर ने कहा कि सृजन की मूल शक्ति आत्मा की चेतना में निहित है — “जो व्यक्ति भीतर से जुड़ा है, वही बाहर कुछ नया रच सकता है।” उन्होंने युवाओं और सृजनकर्ताओं से आग्रह किया कि वे अपने कार्य को केवल पेशा न समझें, बल्कि ‘राष्ट्र और धर्म की सेवा’ का माध्यम बनाएं। कार्यक्रम का आयोजन India Out Loud द्वारा किया गया, जो समकालीन भारत के वैचारिक, सांस्कृतिक और मीडिया जगत को नई दिशा देने का प्रयास कर रहा है। इस पहल का मकसद डिजिटल युग के उन ‘क्रिएटर्स’ को एकजुट करना है जो सत्य, संस्कृति और सनातन मूल्यों को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प रखते हैं।
कार्यक्रम के दौरान वातावरण में भक्ति, प्रेरणा और सकारात्मकता का अद्भुत संगम देखने को मिला। हनुमान जी की प्रतिमा के सान्निध्य में जब बाबा बागेश्वर ने अपने करकमलों को उठाकर आशीर्वाद दिया, तो उपस्थित हर आत्मा ने मानो एक अदृश्य ऊर्जा का अनुभव किया। यह आयोजन इस बात का प्रतीक है कि भारत की नई पीढ़ी केवल तकनीकी सृजन नहीं कर रही, बल्कि ‘आध्यात्मिक सृजन’ की दिशा में भी आगे बढ़ रही है। यह वही भारत है जो आधुनिकता के साथ-साथ अपनी संस्कृति, अध्यात्म और राष्ट्रभावना को समान रूप से गले लगाना जानता है।
अंत में आयोजकों ने संदेश दिया “जब सृजनकर्ता एक साथ आते हैं, तो केवल कंटेंट नहीं, बल्कि संस्कृति की नई चेतना जन्म लेती है।”
*समानता और एकता की दिशा में नई पदयात्रा*
बाबा बागेश्वर धाम सरकार ने अपने संबोधन में समाज से छुआछूत, जातिगत भेदभाव और धार्मिक भय को समाप्त करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा —
“छुआछूत की करो भगाई, हिन्दू हिन्दू हो एक भाई।” इस संदेश के साथ उन्होंने घोषणा की कि यमुना से यमुना तक पदयात्रा आयोजित की जाएगी, जिसका उद्देश्य समाज में समानता, एकता और सामाजिक समरसता का भाव जगाना है। यह पदयात्रा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति की शुरुआत है —जहाँ हिन्दू समाज अपने भीतर के विभाजनों को समाप्त कर एक सशक्त, आत्मनिर्भर और भयमुक्त समाज की ओर बढ़ेगा। बाबा बागेश्वर ने कहा कि यह दूसरी बड़ी पदयात्रा होगी, जो केवल भक्ति का नहीं बल्कि “राष्ट्र-निर्माण की साधना” का प्रतीक बनेगी।
