बिहार के चुनावों में एक ऐसा नाम, जो अभी पच्चीस साल की नहीं हुई लेकिन उसने जो पच्चीस साल में भाजपा के एक मामूली कार्यकर्ता से उठकर पार्टी की सेवा की है, यह साधारण कार्यकर्ता को कथित सम्मान केवल भारतीय जनता पार्टी ही दे सकती है। भाजपा में मोदी शाह के इस युग में जो सम्मान एक साधारण कार्यकर्ता को मिला है, वह सम्मान कभी अटल आडवाणी की भाजपा में भी नहीं मिला था। बिहार के चुनावों में मैथिली ठाकुर को उम्मीदवार बनाकर जो भाजपा के प्रति उनकी निष्ठा व समर्पण का कथित ईनाम दिया है तो इसको देखकर राजस्थान में भजन लाल शर्मा का पर्ची द्वारा सत्ता सौपना भी बहुत छोटा हो गया। झुन्झुनू के भाजपा कार्यकर्ताओं को जिलाध्यक्ष के मनोनयन को लेकर पैरासूट जिलाध्यक्ष करार दिया। निष्ठावान कार्यकर्ताओं को मैथली ठाकुर को बिहार चुनावों में भाजपा का टिकट दिया गया, इससे सीख लेनी होगी कि भाजपा में पार्टी के प्रति समर्पण के मायने बदल गये है। एक साधारण कार्यकर्ता को तवज्जो देने वाली बात अब किताबी बात होकर रह गई है, धरातल पर कुछ और ही दिखाई दे रहा है। यह भाजपा की कथनी और करनी में भेद बता रहा है। यदि झुन्झुनू जिले की बात करें तो भाजपा के मैथिली ठाकुर के फैसले को ध्यान में रखेंगे तो उनको मलाल नहीं होगा कि भाजपा के प्रति समर्पण व निष्ठा रखने वाले कार्यकर्ताओं को हासिए पर क्यों धकेल दिया। वैसे देखा जाए तो आयातित नेताओं ने भाजपा संगठन पर कब्जा कर लिया है व नवनियुक्त जिलाध्यक्ष खुद को असहाय महसूस कर रही है। जितने भी नवनियुक्त भाजपा जिलाध्यक्ष मनोनीत किए थे, उन्होंने अपनी टीम का गठन कर लिया है लेकिन झुंझुनूं में बिना सेना के सेनापति की तरह जिलाध्यक्ष अपनी टीम नहीं बना पाई है। उस टीम में भी वही प्रकिया दोहराई जायेगी। जिले मे भाजपा कार्यकर्ताओं में मायूसी का माहौल नजर आ रहा है। पुराने व निष्ठावान कार्यकर्ता खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। निश्चित रूप से यह मायूसी आगामी नगर निकाय व पंचायती चुनावों में अपना रंग दिखायेगी क्योंकि पार्टी ने आयातित नेताओं को मंचो पर तवज्जो देना इस बात का संकेत है कि भाजपा ने वही संस्कृति का अनुसरण कर लिया है, जो बिहार में मैथिली ठाकुर के मामले में किया है।
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