धार्मिक उपदेश: धर्म कर्म

AYUSH ANTIMA
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दरद बुझे दरदवन्द, जाके दिल दर्द होय। क्या जाने दादू दरद की, नींद भर सोय। संत शिरोमणि महर्षि श्रीदादू दयाल जी महाराज कहते हैं कि अन्य पुरुष का किया हुआ कर्म दूसरे व्यक्ति को फल नहीं दे सकता किंतु जो कर्म करता है, उसी को उस कर्म का फल भोगना पड़ता है। जैसे जिसके शरीर में पीड़ा (कष्ट) होगी तो, वही व्यक्ति उस पीड़ा को व्यथित होकर रोयेगा दूसरा नहीं क्योंकि उसके पीड़ा ही नहीं है। ऐसे ही जिसके हृदय में भगवान के दर्शन की पीड़ा होगी तो वही भगवान के दर्शनों की प्रार्थना करेगा, दूसरा नहीं।श्रीमद्गवतगीता में अपनी आत्मा का उद्धार स्वयं करो, किसी दूसरे की तरफ मत देखो, क्योंकि आपने ही अपने पर कूड़ा कंकर डाल रखा है, आप स्वयं ही अपने शत्रु तथा मित्र है। कामनामूलक में लिखा है जैसे समुद्र में जहाज के नष्ट होने पर जल से बाहर निकलने के लिए कोई दूसरा, दूसरे को निकालने की चिंता नहीं करता, अपितु स्वयं का रक्षण करता है। वैसे ही जो स्वयं अपना उद्धार करता है, वह प्रभु को भी प्रिय लगता है।

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