एक बार एक प्रेस कांफ्रेंस में दशानन रावण से प्रश्न किया गया कि जब आपको रोना आता है तो बीस आंखों में पानी आता होगा तो रावण ने सहज भाव से जबाब दिया कि मेरे राज में रोने वाला काम जनता को सुपुर्द कर रखा है। इस संदर्भ में यदि आज के राजनीतिक माहौल के परिदृश्य में देखें तो दशानन की बात आज भी प्रसांगिक है, हालांकि आज के रावणों के दस सिर नहीं बल्कि एक ही सिर है। यह एक मुंह ही दस मुंह का काम करता है क्योंकि इस मुंह से रोज जुमले फेंके जाते हैं और जनता को भ्रमित किया जाता है कि उन नेताओं से ज्यादा शुभ चिंतक उनका कोई नहीं है। इन नेताओं ने शुभ चिंतक की परिभाषा को भी अपने हिसाब से गढ़ लिया है। इनकी नजरों में शुभचिंतक का अर्थ है कि आम जनता का शुभ देखकर चिंतित हो जाना, यानी कि मेरे राज में प्रजा का शुभ आखिर क्यों हो रहा है। रोजाना सौगातो की बौछारों से आमजन का बाहर निकलना मुहाल हो गया है क्योंकि इन बौछारों ने गलियों में बाढ ला दी है, जो सड़कों के जाल बिछाने के जो बड़े बड़े दावे हो रहे हैं, उन्हीं सड़कों पर इन सौगातो की बौछारो से उन सड़कों में बने गड्ढों ने आमजन का बाहर निकलना दूभर कर दिया है। दशानन के राज में तो उनके आदेश से ही काम हो जाया करते थे। उनके इशारे से ही सूर्य भगवान चलते थे लेकिन राजस्थान सरकार ने भी ऐसा ही कमाल किया है, 34965 किमी सड़कों का निर्माण मात्र 24099 रूपये में किया गया। यह निश्चित रुप से बहुत ही आश्चर्यजनक बात है कि सरकारें जनता के हितों के प्रति कितना समर्पण भाव रखती है कि उनके टेक्स के पैसों का दुरुपयोग न हो क्योंकि अमूमन एक किमी सड़क निर्माण पर करीब एक करोड़ रूपया खर्च होता है। सामाजिक दृष्टि से यदि आधुनिक काल और दशानन के राज्य का तुलनात्मक अध्ययन करें तो रावण ने कभी भी मर्यादा का उल्लघंन नहीं किया। सीता का हरण जरूर किया लेकिन अशोक वाटिका में जब भी गया तो अपनी पत्नी मंदोदरी के साथ ही गया लेकिन आधुनिक परिवेश में देखें तो रोज महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की खबरें देखने को मिलती है। रावण के पारिवारिक रिश्तों को देखे तो अपने भाई विभीषण को राम की शरण में भेज दिया, जिससे तर्पण करने को कोई पारिवारिक सदस्य बचा रहे। आधुनिकता की इस अर्थ दौड़ ने पारिवारिक रिश्तों को छिन्न भिन्न कर दिया। ऐसे समाचार भी देखने को मिलते हैं कि मां बाप की मौत के बाद बेटा विदेश से ही विडियो काल पर दाह संस्कार देखकर तर्पण की रस्म अदा कर लेता है। अपने मां बाप को वृद्ध आश्रम में भेजकर बेटे होने का फर्ज अदा करते हैं। उन बेटो के मुंह से सनातन धर्म की व मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की बाते बहुत सुनने को मिलती है लेकिन क्या उन्होंने एक भी आदर्श भगवान श्रीराम का अपने जीवन में अंगीकार किया है, जिन्होंने अपने पिता की आज्ञा से राजसी ठाठ त्याग कर वनवासी हो गये।
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