नगर निकाय व पंचायतो के चुनावों की आहट ने क्षेत्र के बहुत से नौजवानों को काम देने का काम कर दिया। पार्षदों के उम्मीदवारों के लिए एक बहुत ही सुखद समाचार है कि राजस्थान के मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने एक बयान में नगर पालिका अध्यक्ष व मेयर के चुनाव सीधे न करवाने का ऐलान किया है। यानी मेयर व नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव चुने हुए पार्षद ही करेंगे। निश्चित रूप से इस बयान को लेकर पार्षद के चुनाव में कूदने वाले उम्मीदवारों की संख्या में इजाफा देखने को मिलेगा क्योंकि डिमांड व सप्लाई का नियम लागू होगा। यहां डिमांड से मेरा मंतव्य चुने हुए पार्षदों की डिमांड रहेगी और सप्लाई वहीं होगी, जहां भाव अच्छे मिलेंगे। सोशल मीडिया पर चिडावा को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म है। भाजपा की स्थिति देखें तो यहां एक बीमार व सौ बीमार वाली स्थिति बनी हुई है। वैसे भाजपा में मची गुटबाजी से शायद ही कोई अनभिज्ञ होगा। राजनिति में कब मित्र शत्रु बन जाए और कब शत्रुता मित्रता में तब्दील हो जाए पता ही नहीं चलता क्योंकि राजनीति संभावनाओं का खेल है और जहां संभावना प्रबल हो वहां राजनेता हाथ मिलाने से परहेज़ नहीं करते। देखा जाए तो आगामी पंचायत व नगर निकाय चुनाव नवनियुक्त भाजपा जिलाध्यक्ष की अग्नि परीक्षा से कम नहीं होंगे। अलग अलग धड़ों में बंटी भाजपा को एक सूत्र में बांधने के साथ ही विजयी पार्षदों की भी बाड़ेबंदी करनी होगी क्योंकि इस बाड़ेबंदी के पीछे मंत्री का यह बयान अहम भूमिका निभाने वाला है कि पार्षद ही अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। देखा जाए तो इस समय चिड़ावा नगर पालिका व चिड़ावा पंचायत समिति पर कांग्रेस का कब्जा है, कांग्रेस के लिए इस कब्जे को खत्म करने की चुनौती होगी। ऐसे नेता भी शायद इन चुनावी मैदान में होंगे, जो पिछले बीस साल से पार्षद का चुनाव नहीं जीत पाए है क्योंकि अध्यक्ष पद सूने खेत में मतीरे की तरह दिखाई देता है, जिसे हर नेता तोड़ने की जुगत में होगा। देखा जाए तो पिलानी विधानसभा क्षेत्र और यदि झुन्झुनू जिला कहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पवन मावंडिया ने जयपुर तक अपनी पकड़ मजबूत की है। उनकी इस राजनीतिक पकड़ व जयपुर के नेताओं से घनिष्ठ संबंध इस बार चिड़ावा नगर पालिका चुनावों में अहम किरदार की भूमिका में होंगे। यही किरदार बहुत से स्थानीय नेताओं की आंख की किरकिरी भी बने हुए हैं, जो कभी पवन मावंडिया उनकी पहली पसंद हुआ करती थी। बहुत से नेताओं ने आगामी चुनावों को देखते हुए अच्छे रिटर्न की आशा में अच्छा खासा निवेश भी कर दिया है और ज्यों ज्यों चुनाव नजदीक होंगे, छुटभैया नेता भी सफेद कुर्ता लगाकर वोटो की गठड़ी कंधे पर लिए घूमते दिखाई देंगे। विकास के दावे होंगे, चिड़ावा को शंघाई बनाने के सपने दिखाए जायेंगे लेकिन विकास यदि होगा तो पार्षदों का ही होगा क्योंकि पार्षद ही अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। अब जनता को सोचना होगा कि कौन अमुक व्यक्ति चिड़ावा नगर पालिका के अध्यक्ष के काबिल है, हालांकि मिडिया ट्रायल में बहुत से चेहरे सामने आ रहे हैं। मतदान हर व्यक्ति का विशेषाधिकार होता है और उसी विशेषाधिकार का प्रयोग उचित उम्मीदवार के लिए करें अन्यथा पांच साल तक चुपचाप जिसको चुना है सहन करे। अध्यक्ष को लेकर मिडिया ट्रायल हो रही है, उसे देखकर एक मारवाड़ी कहावत याद आती है कि मोडा घणा बैकुंठ सांकडी। नगर निकाय व पंचायतो के चुनाव आगामी फरवरी के बाद ही संभव हो पायेंगे तब तक शायद और चेहरे अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हो जाए क्योंकि बहुत से समाजसेवा करने वाले महानुभावों के चिड़ावा के विकास का जज्बा हिलौरें मार रहा है।
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