शेखावाटी की धरा शूरवीरों की धरा होने के साथ ही भामाशाहों की धरा रही है। इन भामाशाहों का सार्वजनिक ट्रस्ट का निर्माण केवल जन हितार्थ रहा था। वह जन हितार्थ वह कार्य थे स्कूल, कालेज, अस्पताल, धर्मशाला, कुंए व बावड़ियों का निर्माण था। शिक्षा वह दीपक है, जो किसी भी परिवार में उजाला ला सकता है। शेखावाटी के भामाशाहों में बिरला, डालमिया, साबू, सोमानी, पीरामल अनगिनत नाम है, जिन्होंने ट्रस्टों का निर्माण कर सरकार से अनुदान व सस्ती जमीनें लेने के साथ टैक्स में भी छूट लेकर उनका पूरा दोहन किया। यदि शिक्षा के क्षेत्र की बात करें तो धीरे धीरे यह स्कूल कालेज बंद कर दिए गये व जमीनों को बेचना शुरू कर दिया। सेवाभाव का वह ध्येय नेस्तनाबूद हो गया और जमीन बेचकर विशुद्ध कमाई का जरिया हो गया। पिलानी में भी सस्ती शिक्षा स्वप्न की बात हो गई क्योंकि उन स्कूलों व कालेज के ताला लगा दिया। पिलानी का एकमात्र कालेज एमके साबू पीजी महाविद्यालय ने इस सत्र से ताला लगा दिया और जल्द ही इस जमीन पर काम्प्लेक्स नजर आयेगा। चिड़ावा की शान रही डालमिया सकूल की बिल्डिंग को जमींदोज कर दिया गया। किसी समय शिक्षा का हब बना बगड़ भी अपनी आभा खोता जा रहा है। इन स्कूलों में अप्रशिक्षित शिक्षकों को रखना इसका मूल कारण है। अभी हाल ही में पीरामल गर्ल्स स्कूल की एक छात्रा का आत्महत्या का मामला भी प्रकाश में आया है। हालांकि यह जांच का विषय है और पुलिस की जांच में ही आत्महत्या के कारणों की पुष्टि होगी। विप्र समाज की इस बेटी के पिता ने हालांकि स्कूल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। अब सवाल जब समाज का आता है तो विप्र समाज के सरमायदारो का इस मामले में सामने न आना चिंता का विषय है। विप्र समाज की एक बेटी ने किन कारणों से आत्महत्या की, इसको लेकर समाज के विप्र समाज का नेतृत्व करने वाले प्रबुद्धजनों को भी बेटी के पिता के साथ खड़ा होना चाहिए था। समाज किसी विप्र बंधु के विपत्ति के समय नहीं खड़ा होता है तो यह विप्र समाज के संगठनों पर गंभीर सवाल खड़े करता है। प्रवासी भामाशाहों का अपनी जन्मभूमि से लगाव खत्म होना शायद इस बात का सूचक है कि उनके पूर्वजों ने समाज हित के उच्चतम आयाम स्थापित किए थे, उनके विपरीत आज की युवा पीढ़ी ने सेवाभाव को कमाई का जरिया बना लिया है।
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