खैरथल जिला विवाद ने अब भाजपा की नींव हिला दी है। नाम बदलने और मुख्यालय स्थानांतरण का फैसला जनता की अस्मिता पर ऐसा हमला साबित हुआ है, जिसने गांव-गांव, ढाणी-ढाणी में आग लगा दी है। आज हालात यह हैं कि लोग खुलकर कह रहे हैं कि “हमारी पहचान का सौदा करने वालों को राजनीतिक तौर पर तबाह कर दिया जाएगा।” बहुत कम लोगो को इस बात की जानकारी होगी कि खैरथल को जिला बनवाने में मेरे योगदान को नजरअंदाज नही किया जा सकता है। गहलोत राज में बनी जिला पुनर्गठन समिति के अध्यक्ष रामलुभाया से मेरे 40 साल पुराने प्रगाढ़ सम्बन्ध है। मैंने उनसे आग्रह किया कि मुझे अपनी मातृभूमि का कर्जा चुकाना है, अतः खैरथल को जिला बनाने की सिफारिश कर मुझे उपकृत करें। रामलुभाया जी ने अपनी सदाशयता का परिचय देते हुए खैरथल को जिला बनाने की पुरजोर सिफारिश की। बाद में विधायक संदीप यादव के दबाव में आकर सीएम अशोक गहलोत ने खैरथल के साथ तिजारा का नाम भी जोड़ दिया। ललित पंवार का भी मैं शुक्रिया अदा करता हूँ, जिन्होंने मेरे कहने पर खैरथल विकास मंच की बात को तफसील से सुना, इन सब बातों के गिरीश डाटा गवाह है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि भाजपा के स्थानीय नेता आखिर चुप क्यों हैं? गांवों में बैठकों का दौर चल रहा है, लोग सड़कों पर उतर रहे हैं और आंदोलनकारी नारे बुलंद कर रहे हैं लेकिन जिन नेताओं से जनता जवाब चाहती है, वही गायब हैं। उनकी यह रहस्यमयी खामोशी लोगों के गुस्से को और भड़का रही है। जनता मानने लगी है कि यह चुप्पी महज़ मजबूरी नहीं, बल्कि किसी गहरे षड्यंत्र का हिस्सा है।
स्थानीय लोगों और बीजेपी के कुछ नेता ऑफ द रिकार्ड कह रहे है कि इस पूरे विवाद के पीछे भावी विधायक रामहेत यादव की चालें काम कर रही हैं। जनता मानती है कि वही इस षड्यंत्र के असली विलेन हैं। उनके इशारे पर ही जिले का नाम बदलने और मुख्यालय स्थानांतरण की साज़िश रची गई, ताकि राजनीतिक समीकरण अपने पक्ष में किए जा सकें। यही वजह है कि सांसद भूपेंद्र यादव की साख और प्रतिष्ठा अब पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। लोग खुलकर कह रहे हैं कि रामहेत यादव की संगत ने भूपेंद्र यादव को राजनीतिक रूप से बर्बाद कर दिया। इससे कोई असहमत नही हो सकता है कि भूपेंद्र यादव में क्षेत्रीय विकास की ललक है। वे देश के बहुत ही मंझे हुए सौम्य और शालीन राजनेताओ में शुमार है। इसी वजह से खैरथल की जनता ने उन्हें प्रचंड मतों से जिताया था। आज जब क्षेत्र की जनता आंदोलनरत है, ऐसे में उन्हें बिना लाग-लपेट के घोषणा करनी चाहिए कि उनके सांसद रहते हुए जिला मुख्यालय अन्यत्र स्थानान्तरित नही किया जाएगा। यदि वे इस घोषणा से बचते है तो यह समझ लेना स्वाभाविक है कि निश्चय ही दाल में कुछ काला है। भाजपा ने शायद सोचा भी नहीं था कि प्रशासनिक आदेश इतनी बड़ी आग भड़का देगा। व्यापारी हों या किसान, छात्र हों या कर्मचारी, हर वर्ग आक्रोश में है। पार्टी के नेता जनता से बचते फिर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री और सांसद भूपेंद्र यादव गोलमोल बयान देकर न केवल खुद को कटघरे में खड़ा कर चुके हैं, बल्कि पूरे इलाके की जनता को आंदोलन की भभकती भट्टी में झोंक चुके है। खैरथल की अस्मिता महज़ नाम नहीं, बल्कि यहां का जीवन-मूल्य है। इसे मिटाने का खामियाज़ा अब भाजपा को चुनाव मैदान में भुगतना होगा। चौपाल से लेकर सड़कों तक एक ही गूंज है कि “हमारी मातृभूमि का अपमान करने वाले चुनाव मैदान में ध्वस्त हो जाएंगे।” हालत यही रहे तो बीजेपी को किराए पर कार्यकर्ता नही मिलेंगे। किशनगढ़ बास और मुंडावर पहले ही बीजेपी से दूर है, तिजारा भी बाबा बालकनाथ के हाथ से खिसक जाएगा। रही बात भूपेंद्र यादव की तो......?
बहुत कम लोगो को ज्ञात होगा कि मैंने भी इसी खैरथल की मिट्टी में जन्म लिया है, यह मेरी मातृभूमि भी और कर्मभूमि भी। भले ही मुझे जयपुर गए 40 साल हो गये है लेकिन इसकी अस्मिता को कभी लहूलुहान नही होने दूंगा। इसी धरती पर मैंने पत्रकारिता की शुरुआत की और 1976 के आसपास यहां का पहला अखबार "खैरथल प्रहरी" प्रारम्भ किया था। अलबत्ता तो जिला मुख्यालय यहां से स्थानान्तरित होगा नही। अगर हो भी गया तो इसके लिए अदालती लड़ाई के अलावा राजनीतिक जंग में भी उतरने से कतई नही हिचकूंगा। मैं अन्य लोगो की तरह पेशेवर चुनाव लड़ने वाला नही हूँ लेकिन खैरथल की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने वालो को सबक सिखाने की गरज से मैं जयपुर छोड़कर खैरथल भी आ जाऊंगा। चुनाव जीतना मेरा मकसद नही होगा, मकसद होगा पेशेवर चुनावबाजो का खेल बिगाड़ना। यह लड़ाई सत्ता की नहीं, सम्मान की है। मैं इस जंग को अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि की अस्मिता बचाने के लिए लड़ूंगा। घर-घर जाकर लोगों से समर्थन मांगूंगा और उन चेहरों को बेनकाब करूंगा, जिन्होंने इस मिट्टी को लहूलुहान किया। यह मेरा चुनाव नहीं, खैरथल की अस्मिता की रक्षा के लिए होगी खुली जंग। इस जंग का नारा होगा-जिन्होंने खैरथल पहचान मिटाने का दुष्कर्म किया है, जनता उसे राजनीति से ही मिटा देगी।