मानसून अपने पूरे यौवन पर है, चारो तरफ बरसात ने मौसम को खुशनुमा बना रखा है। राजस्थान के भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठोड़ के एक बयान ने राजस्थान के सियासी माहोल में गर्माहट ला दी है। मदन राठौड़ ने एक बयान में कहा कि बदलाव सामान्य प्रक्रिया है। वैसे प्रकृति का नियम है कि समय के अनुसार बदलाव होना भी जरूरी है लेकिन राजनीति में सत्ता की कुर्सी में बदलाव अलग मायने रखता है। प्रदेशाध्यक्ष के अनुसार अभी जो नेता सत्ता में बैठे हैं, उन्हें संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है। इसके मायने यह है कि राजस्थान में कहीं न कहीं संगठन अभी भी मजबूत स्थिति में नहीं है। वैसे भाजपा का यह एक रटा रटाया आलाप रहता है कि भाजपा में हर कार्यकर्ता को जिम्मेदारियां दी जा सकती है। यह जिम्मेदारी नेतृत्व तय करता है। यह नेतृत्व प्रदेश स्तर का है या केन्द्रीय नेतृत्व है, इसको लेकर उन्होंने खुलासा नहीं किया। उनके इस बयान से सरकार के मंत्रियों में हड़कंप मच गया कि कहीं उनका नंबर कुर्सी खोने की लिस्ट मे तो नहीं है। अभी सरकार बने करीब डेढ़ वर्ष हो चुका है। अब सवाल यह उठता है कि वह कौनसा मंत्री हैं, जिसके बिना संगठन कमजोर है। देखा जाए तो सत्ता की मलाई खाने वाले नेताओं की बहुत लंबी लिस्ट है। भाजपा के जो मुख्यमंत्री के चेहरे थे, वे नेपथ्य में चले गये है। उनकी संगठन व सरकार मे कोई भूमिका नजर नहीं आ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे धार्मिक यात्राओं की आड़ में अपना शक्ति प्रदर्शन कर रही है। राजेन्द्र राठौड़ अखबार में लेख लिखकर अपने वजूद को बचाने की कवायद कर रहे हैं। राजस्थान की राजनीति में मुख्यमंत्री भजन लाल राजनीति का केन्द्र बिन्दु बने हुए हैं क्योंकि उन पर दिल्ली दरबार का आशीर्वाद बना हुआ है। मदन राठौड़ के बयान ने मंत्रियों व संगठन के पदाधिकारीयों की नींद उडा दी। सभी अपना पद बचाने को लेकर अपने आकाओं की शरण में चले गये व अपने हिसाब से लाबिंग कर रहे हैं। अभी तक निगम व बोर्डों को लेकर भी भजन लाल शर्मा नियुक्तियां नहीं कर पाए हैं। वैसे देखा जाए तो संगठन मे मनोनयन को लेकर विरोध के स्वर देखने को मिल रहे हैं। झुन्झुनू में जिलाध्यक्ष के मनोनयन को लेकर प्रदेश प्रवक्ता मुखर विरोध पर उतर आए। वे प्रदेश नेतृत्व की कार्यशैली को लेकर उसको कटघरे में खड़ा करने वाले बयान देने लगे। हालांकि उनके आरोपों में कितनी सच्चाई है, इसका जबाब तो प्रदेश नेतृत्व ही दे सकता है। अपनी नाराज़गी को व्यक्त करने के लिए प्रदेश प्रवक्ता ने सार्वजनिक मंच का चयन किया, उनकी यह कार्यवाही प्रदेश नेतृत्व को नागवार गुजरी और उन्हें पार्टी के बाहर का रास्ता दिखा दिया। भाजपा की सरकार का गठन होते ही भाजपा के हर कार्यकर्ता की आकांक्षाओं में बढ़ोत्तरी देखने को मिली, उसका परिणाम रहा कि संगठन व सरकार में तालमेल की कमी नजर आई। विधायकों व आम कार्यकर्ता के काम न होने व अफ़सरशाही हावी होने की खबरें देखने को मिली। मदन राठौड़ के बयान को लेकर मंत्रिमंडल व संगठन का क्या प्रारूप होगा, यह आने वाला समय ही निर्धारित करेगा।
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