जयपुर/दिल्ली (महेश झालानी): राजस्थान की राजनीति एक बार फिर उबाल पर है। दिल्ली के सियासी गलियारों में इन दिनों कुछ ऐसा पक रहा है, जिसकी महक अब जयपुर तक पहुंचने लगी है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हाल ही में हुई तकरीबन आधे घंटे की मुलाकात को यूं ही नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। यह मुलाकात सिर्फ एक शिष्टाचार भेंट भर नहीं थी बल्कि इसके पीछे गंभीर राजनीतिक संदेश और संभावनाओं का संकेत छिपा है। सूत्रों के मुताबिक, यह बैठक पूरी तरह से गोपनीय रखी गई। न तो पार्टी के आधिकारिक हैंडल से कोई तस्वीर जारी हुई, न ही किसी प्रवक्ता ने बयान दिया लेकिन जो राजनीतिक धुंध अब तक पर्दे में थी, वह धीरे-धीरे साफ होने लगी है। बीते कुछ वर्षों से यह जगजाहिर रहा है कि वसुंधरा राजे को बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व, विशेष रूप से प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से वैसा समर्थन नहीं मिला, जैसा एक दिग्गज नेता को मिलना चाहिए था। विधानसभा चुनावों के दौरान टिकट बंटवारे से लेकर नेतृत्व के मामले में वसुंधरा को अकसर किनारे रखा गया। पार्टी नेतृत्व ने न तो उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया और न ही चुनाव प्रचार में निर्णायक भूमिका दी। कई मौकों पर तो उनके समर्थकों ने यहां तक आरोप लगाया कि राजे को जानबूझकर दरकिनार किया जा रहा है। भजन लाल के नाम की पर्ची खुलवाकर वसुंधरा को सार्बजनिक रूप से न केवल अपमानित किया गया बल्कि उनको जबरदस्त तरीके से प्रताड़ित किया गया। ऐसे में अचानक दिल्ली बुलाकर प्रधानमंत्री से एकांत में मुलाकात कराना महज इत्तेफाक नहीं माना जा सकता। बल्कि यह संकेत है कि बीजेपी राजस्थान में किसी बड़े बदलाव की तैयारी कर रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वसुंधरा एक बार फिर केंद्रीय भूमिका में हो सकती हैं लेकिन इसका यह मतलब कतई नही है कि भजन लाल को हटाया जा रहा है। धनखड़ की रवानगी के बाद उप राष्ट्रपति के चयन के संदर्भ में भी वसुंधरा और मोदी की मुलाकात को देखा जा रहा है। राजस्थान में भजन लाल शर्मा के नेतृत्व वाली सरकार फिलहाल आंतरिक खींचतान और नौकरशाही हावी होने जैसी चुनौतियों से जूझ रही है। पार्टी के कई विधायक अंदरखाने असंतुष्ट हैं। कुछ विधायकों के वसुंधरा के लगातार संपर्क में रहने की खबरें पहले भी सामने आ चुकी हैं। अब अगर वसुंधरा को फिर से एक्टिव रोल दिया जाता है तो यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या मौजूदा सरकार पर कोई संकट आने वाला है ? कई राजनीतिक जानकार इस मुलाकात को “संकेतात्मक सर्जरी” की शुरुआत मान रहे हैं। हो सकता है कि दिल्ली दरबार अब भजन लाल की कार्यशैली और पकड़ को लेकर चिंतित हो और विकल्पों पर विचार कर रहा हो। वसुंधरा के पास जनाधार है, संगठन पर पकड़ है और नौकरशाही में भी उनकी पकड़ मानी जाती रही है। दिल्ली में इस पूरी कवायद को लेकर यह भी चर्चा है कि पर्दे के पीछे आरएसएस की भूमिका अहम हो सकती है। संघ के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी पहले ही राजस्थान में स्थायित्व और प्रशासनिक दक्षता को लेकर चिंता जता चुके हैं। वसुंधरा राजे भले ही संघ की पसंद न रही हों, लेकिन यदि मामला भाजपा की राज्य सरकार को बचाने और संगठन को नियंत्रित करने का हो, तो संघ लचीला रुख अपना सकता है। राजनीति में संदेश शब्दों से कम, घटनाओं से ज्यादा दिए जाते हैं। वसुंधरा-मोदी मुलाकात भी ऐसा ही एक संदेश है—संकेत है कि राजस्थान में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल सकते हैं। जिस चुप्पी में यह बैठक हुई, वह शायद आने वाले तूफान की आहट है। फिलहाल यह कहना जल्दबाजी होगा कि वसुंधरा फिर से मुख्यमंत्री की दौड़ में हैं, लेकिन इतना तय है कि अब उन्हें नजरअंदाज करना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा की वापसी अब महज अटकल नहीं, एक संभावित स्क्रिप्ट है, इसका क्लाइमेक्स जल्द ही सामने आ सकता है।
राजनीतिक और प्रशासनिक हलको में यह चर्चा बड़ी तीव्र गति से फैल रही थी कि मुख्य सचिव सुधांश पन्त को दिल्ली तलब किया गया है। हकीकत इससे इतर है, वे दिल्ली गए ही नही और न उन्हें किसी ने तलब किया। अपने दफ्तर में बैठकर प्रतिदिन की तरह कार्य निपटा रहे है। यह खबर अवश्य है कि पिछले दिनों सरकार के कामकाज का जायजा लेने के लिए दिल्ली से एक विशेष टीम जयपुर आई थी। टीम ने यह पाया कि सीएम भजन लाल की ईमानदारी पर किसी को संदेह नही है लेकिन उनके सुस्त और विलम्ब से निर्णय लेने की वजह से विधायको और पार्टी कार्यकर्ताओं में जबरदस्त आक्रोश है।