चिड़ावा (राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला): भारत-बांग्लादेश सीमा पर बीएसएफ की 67वीं बटालियन में तैनात असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर राकेश पायल (45) का ड्यूटी के दौरान हार्ट अटैक से निधन हो गया। उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार चिड़ावा में राजकीय सम्मान के साथ किया गया लेकिन इस दौरान एक मुद्दा चर्चा का विषय बना रहा। शहीद राकेश पायल की अंतिम यात्रा में उन बड़े नेताओं की अनुपस्थिति ने लोगों के मन में सवाल खड़े किए, जो आमतौर पर चुनावी मौसम या राजनीतिक लाभ के अवसरों पर सक्रिय दिखाई देते हैं। स्थानीय लोगों में इस बात को लेकर नाराजगी देखी गई कि न तो क्षेत्रीय विधायक (एमएलए), न सांसद (एमपी) और न ही कोई अन्य प्रमुख नेता इस वीर सपूत की अंतिम विदाई में शामिल हुए। चर्चा है कि यदि विधानसभा या लोकसभा चुनाव नजदीक होते, तो शायद ये नेता मौके पर मौजूद होते। अंतिम यात्रा में कुछ ऐसे चेहरे जरूर दिखे, जो आगामी नगरपालिका चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने की तैयारी में हैं। इनमें वे लोग भी शामिल थे, जो पहले चुनाव जीत चुके हैं और वे भी जो हार गए थे। लोगों का कहना है कि नेताओं के लिए शहीद का सम्मान केवल राजनीतिक फायदे-नुकसान तक सीमित है। एक स्थानीय निवासी ने सवाल उठाया, "जो नेता किसी बड़े बिजनेसमैन के स्वागत में घंटों लाइन में खड़े रह सकते हैं, उनके पास एक शहीद के परिवार को सांत्वना देने के लिए एक मिनट का समय नहीं है ?" यह सवाल केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि अंतिम यात्रा में शामिल आम जनता के मन का है। राकेश पायल की शहादत को सम्मान देने के लिए स्थानीय लोग बड़ी संख्या में एकत्र हुए, लेकिन नेताओं की अनुपस्थिति ने इस सम्मान को अधूरा सा बना दिया। यह घटना न केवल चिड़ावा, बल्कि पूरे समाज के लिए एक विचारणीय प्रश्न छोड़ गई है कि क्या शहीदों का सम्मान नेताओं की नजर में केवल राजनीतिक अवसरों तक सीमित है ?
वीर सपूत राकेश पायल के सम्मान में नेताओं की अनुपस्थिति: चिड़ावा में चर्चा का विषय
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July 13, 2025
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