भारत के उपराष्ट्रपति 74 वर्षीय जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। भारती के संसदीय इतिहास में यह पहला अवसर है कि उपराष्ट्रपति ने समय से पहले ही पद का त्याग किया हो। उपराष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल अगस्त 2027 तक था। भले ही धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया हो लेकिन राजनीतिक विश्लेषको को उनकी यह बात गले नहीं उतर रही। इस्तीफे के कुछ घंटे पहले जगदीप धनखड़ राज्यसभा के सभापति की भूमिका में सक्रिय नजर आ रहे थे। उन्होंने राज्यसभा के सदस्यों को शपथ दिलाने के साथ ही दिवंगत सदस्यों की जीवनी पर विस्तृत प्रकाश डाल रहे थे। उनके इस कदम से विपक्ष भी सकते मे है क्योंकि विपक्ष धनखड़ पर यह कहकर हमलावर रहता था कि उपराष्ट्रपति पद पर रहकर धनखड़ भाजपा के प्रवक्ता के रूप में काम कर रहे हैं। अपनी बेबाकी के लिए धनखड़ उपराष्ट्रपति पद पर रहते हुए भी उन्होंने लीक से हटकर देश की न्याय पालिका को लेकर तल्ख टिप्पणी की थी। जस्टिस वर्मा को लेकर भी उन्होंने देश की न्याय पालिका पर गंभीर सवाल खड़े किये थे। कार्यपालिका व न्याय पालिका को लेकर बतौर वकील उन्होंने व्याख्या की थी। धनखड़ एक प्रसिद्ध वकील थे, उनका राजनीतिक सफर के सबसे महत्वपूर्ण आयाम यह था कि जाट बाहुल्य झुन्झुनू से सांसद बनने के साथ ही केन्द्र में जगह बनाई। हालांकि कांग्रेस के प्रति उनका समर्पण भाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1998 के चुनावों में कांग्रेस ने उन पर दांव नहीं खेला, इससे खफा होकर भाजपा में शामिल हो गये थे। उनके राजनीतिक धैर्य का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 16 वर्षों तक भाजपा में किसी पद की लालसा तक इंतजार करते रहे। उनका यह 16 वर्षों का राजनितिक वनवास बंगाल के राज्यपाल के मनोनयन साथ ही खत्म हुआ। बंगाल में भी ममता बनर्जी के साथ उनके मधुर संबंध नहीं रहे।कई बार टकराव की स्थिति देखने को मिली थी। यह उनके राजनीतिक कौशल, चातुर्य और संघर्ष करने का स्वभाव था कि तीन साल तक ममता बनर्जी से टक्कर लेते रहे। उनके इसी संघर्ष से कायल होकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उपराष्ट्रपति पद पर सुशोभित किया था। उनके उपराष्ट्रपति के कार्यकाल को देखकर यही कहा जा सकता है कि बहुत ही सुखद वातावरण में हुआ था। अब उनके स्वास्थ्य को लेकर त्याग पत्र देने की कहानी का किरदार कौन है ? इसका जबाब मोदी शाह की जोड़ी ही दे सकती है ।
3/related/default