इस देश में रायचंदो की कमी नहीं

AYUSH ANTIMA
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रायचंदो को लेकर मेरे को एक वाकया याद आता है। एक व्यक्ति ने देशी घी की दुकान का उद्घाटन किया व बोर्ड पर लिखवा दिया कि यहां गाय का शुद्ध घी मिलता है, फिर क्या था एक रायचंद आये और बोले शुद्ध घी होगा तो गाय का ही होगा इसे मिटाओ। अब बोर्ड पर रह गया शुद्ध घी मिलता है। इतने में दूसरे रायचंद आ गये, अरे यह क्या घी तो सदैव ही शुद्ध रहा है, धार्मिक आयोजन मे तभी तो इसका उपयोग करते हैं मिटाओ उसे। अब बोर्ड पर रह गया घी मिलता है लेकिन रायचंदो ने फिर भी दुकानदार का पीछा नही छोड़ा, एक रायचंद ओर आ गये देखा कि शीशे के लगे काउंटर में घी रखा हुआ था तो बोले घी तो सभी को दिखाई देता है, इसलिए बोर्ड पर लिखने की जरूरत नहीं है मिटाओ इसे। अब बोर्ड पर केवल मिलता है ही दिखाई दे रहा था। उपरोक्त वाकया राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर फिट बैठता है, जो मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा को लेकर रायचंद बने हुए हैं और राय व्यक्त कर रहे हैं कि भजन लाल शर्मा को हटाने की साज़िश चल रही है। गहलोत उस रायचंद की भूमिका में नजर आ रहे हैं कि उनको भजन लाल शर्मा की कुर्सी की इतनी चिंता है कि उनको सार्वजनिक रूप से बयान देकर रायचंद बने। गहलोत को इस बात की खुफिया रिपोर्ट जानकारी कहां से मिली या उनकी जादूगरी का कमाल है, यह तो गहलोत खुद ही बता सकते हैं। अशोक गहलोत को सोचना होगा कि भाजपा में मोदी युग चल रहा है और मोदी राजनितिक प्रयोग करने में माहिर हैं। उन्होंने राजस्थान की कद्दावर नेता पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को दरकिनार कर पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा को राजस्थान की कमान सौपी। ऐसे ही चौंकाने वाले राजनितिक प्रयोग उन्होंने हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी किए। भजन लाल शर्मा की कार्यशैली से कहीं भी नजर नहीं आता कि उनको कुर्सी छोड़नी पड़ेगी। विदित हो केन्द्र में तीन दबंग नेता भूपेंद्र यादव, अर्जुन राम मेघवाल व गजेन्द्र सिंह शेखावत जैसे नेताओं का भी दखल भजन लाल शर्मा के काम करने में नहीं देखा गया। अशोक गहलोत को कांग्रेस ने हासिए पर धकेल दिया। यह पहला मौका है कि मुख्यमंत्री न रहते हुए संगठन में उनके पास कोई पद नहीं है। यही हताशा है कि अशोक गहलोत ऐसे अनर्गल बयान देकर राजनीतिक पिच पर बने रहना चाहते हैं जबकि उनके बयानों को राष्ट्रीय नेतृत्व ही नहीं बल्कि प्रदेश में कांग्रेस के नेता भी गंभीरता से नही लेते हैं । इसलिए अशोक गहलोत को रायचंद की भूमिका से बचना चाहिए।

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