दिल्ली (श्रीराम इंदौरिया): संस्कृत भारती दिल्ली द्वारा 07 जून 2025 से 16 जून 2025 तक युगाब्द 5127 ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी से आषाढ़ कृष्ण पंचमी पर्यन्त आयोजित आवासीय प्रबोधन वर्ग का भव्य समापन हुआ। संस्कृत समाज को संगठित करने की भाषा है। संस्कृत भारतीयता की भाषा है, संस्कृत ही भारत की मूल पहचान है। विश्व का सर्वविध ज्ञान संस्कृत में सर्व प्रथम मानव के समक्ष वेदों के रुप में प्रस्तुत हुआ था। अतः वेद मनुश्यों को एकजुट रहने का प्रशिक्षण देते हैं। वेदों की भाषा संस्कृत होने से सभी भाषाओं में संस्कृत एकजुटता की भाषा है। यह विचार व्यक्त करते हुए एएसएन वरिश्ठ माध्यमिक विद्यालयः मयूर विहार फेज 1 में संस्कृत भारती द्वारा आयोजित सप्त दिवसीय आवासीय प्रबोधन वर्ग में मुख्य अतिथि के रुप में पधारे केन्द्रीय राज्य मन्त्री सड़क राजमार्ग एवं परिवहन तथा निगमित मन्त्री हर्ष मल्होत्रा ने कहा। संस्कृत सबसे उत्तम, सरल, सरस एवं सुमधुर भाषा है। आज भी संस्कृत के बिना कोई विद्या या विज्ञान पूर्ण नहीं हो सकता।" मुख्य वक्ता के रुप में पधारे संस्कृत भारती के उत्तर क्षेत्र संगठन मन्त्री नरेन्द्र कुमार ने कहा कि संस्कृत ही भारतीयता का प्रमाण है। इसका संरक्षण इसके सम्भाषण से ही सम्भव है। समाज में समानता परस्पर समभाव, सामंजस्य सहयोग और संस्कार जैसे अत्यन्त भारतीय भावना के विषयों को समाज में समुपस्थापित करने के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान ही नहीं अपितु संस्कृत में व्यवहार भी आवश्यक है। संस्कृत भारती पिछले 45 वर्षों से निरन्तर सभी को संस्कृत में सम्भाषण करने के लिए प्रयास कर रही है। इसी क्रम में आवासीय वर्गों का आयोजन कर 8 से 10 दिनों में संस्कृतमय वातावरण देकर प्रशिक्षुओं को संस्कृत में सम्भाषण की योग्यता प्रदान करती है। भाषा के ज्ञान में संस्कृत में निबद्ध शास्त्रीय ज्ञान को नहीं जाना जा सकता। अतः भाषा सम्भाषण के माध्यम से ही सीखा जा सकता है। संस्कृत मातृभाषा, मातृभूमि और मातृ संस्कृति के संरक्षण का ज्ञान कराती है। संस्कृत केवल भाषा नहीं है, यह आत्मबोध, राष्ट्रबोध एवं संस्कृति बोध का साधन है। इसकी रक्षा राष्ट्र की रक्षा है।"
सारस्वत अतिथि डॉ.विनोद नारायण इन्दुरकर, अध्यक्षः (सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र) ने कहा कि संस्कृत ही विश्व को मानवता का पाठ पढाती है अतः विश्व में मानवता की रक्षा के लिए समाज में संस्कृत का होना अनिवार्य है। प्रत्येक भारतीय को संस्कृत भाषा का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। भारतीय नाट्यशास्त्र का मूल संस्कृत है। भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र संस्कृत में ही रचा। जीवन को कलामय बनाने हेतु संस्कृत का ज्ञान अत्यावश्यक है।" विशिष्टातिथि के रुप में आमन्त्रित रविकान्त, विधायक त्रिलोकपुरी ने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कृत सबके साथ युवाओं की भाषा है, आधुनिक युग में युवाओं में संस्कृत सम्भाषण के प्रति क्रेज अधिक हुआ है, देश का युवा चाहे तो संस्कृत को विश्व की सबसे आकर्शित भाषा बना संकती है। रविकान्त जी ने अपने संबोधन में कहा — "संस्कृत सेवा ही जीवन का ध्येय है। इस वर्ग के सभी प्रतिभागी संस्कृत जीवन जीने हेतु संकल्पित हुए हैं। उन्होने युवाओं को नित्य संस्कृत में ही सम्भाषण करने का आग्रह किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजीव नयन लुथरा प्रबन्ध निदेशक, एएसएन वरिश्ठ माध्यमिक विद्यालयः मयूर विहार फेज 1 ने किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा — "संस्कृत भाषा के संरक्षण के बिना भारत का संरक्षण संभव नहीं। संस्कृत पढ़ने वाले समाज में विशेष मान-सम्मान पाते हैं।" इस अवसर पर संस्कृत भारती के प्रान्ताध्यक्ष वागीश भट्ट ने प्रबोधन वर्ग में पधारे हुए समस्त अतिथियों एवं प्रशिक्षुओं का धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने कहा — "यह प्रबोधन वर्ग संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु अत्यन्त सफल रहा। इससे सभी छात्रों में नवीन उत्साह एवं चेतना का संचार हुआ है।" इस वर्ग में लगभग 70 छात्रों ने 8 दिनों के आवासीय वर्ग में रहकर सम्पूर्ण संस्कृत सम्भाषण सीखा। समापन समारोह में प्रशिक्षित छात्रों ने संस्कृत में विविध कार्यक्रम प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में प्रान्त मन्त्री डॉ.देवकीनन्दन, विनायक हेगड़े, विजय कुमार, डॉ.परमेश कुमार, देवेन्द्र कुमार, अमोल मणि, नारायण सुवेदी, अजित आदि सौ से अधिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।