झुंझुनूं जिले में अनगिनत गौशालाएं संचालित है, जिनको भामाशाहों की आर्थिक सहयोग मिलने के साथ ही सरकार द्वारा अनुदान भी मिलता है। सूत्रों की माने तो झुंझुनूं जिला कलेक्टर से गौशाला संचालकों ने कुछ ओर सरकारी सुविधाओं की मांग की, जिसमे मुख्य मांग गौशाला में बिजली कनेक्शन को व्यवसायिक न होकर घरेलू श्रेणी में लिया जाए। जिला कलेक्टर रामवतार मीणा साधुवाद के पात्र हैं कि उन्होंने बिजली विभाग को आदेशित किया कि गौशालाओ का संचालन समाज हित में आता है, अतः इनका बिल व्यवसायिक दर पर न लगाकर घरेलू किया जाए लेकिन सवाल यह उठता है कि यदि यह गौशालाएं गौवंश की सेवा में समर्पित है तो बेसहारा गौवंश को गौशाला में आसियाना देने से मना क्यों करती है। यदि ऐसा है तो उन गौशाला संचालकों को गौशाला संचालन की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, ऐसी संस्थाएं गौशाला की आड़ में डेयरी का संचालन कर रही है। जिला कलेक्टर महोदय को उन बेसहारा गौवंश की करूणा पुकार भी सुननी चाहिए, जो कूड़ा करकट व लठ्ठ खाने को मजबूर हैं। इस भीषण गर्मी में पीने का पानी भी उनको नसीब नहीं है। इन बेसहारा गौवंश को सहारा देने की पहल भी कलेक्टर महोदय को करनी होगी कि स्थानीय निकायों को पाबंद करें कि बेसहारा गौवंश को स्थानीय गौशाला तक पहुचाया जाए व स्थानीय गौशाला संचालक इन बेसहारा गौवंश को लेने से मना न करे। किसी भी गौशाला संचालक के लिए यह बड़ी उपलब्धि नहीं कि उसके पास कितने करोड़ रुपए की एफडी है बल्कि यह सबसे बड़ी उपलब्धि होनी चाहिए कि उसने कितने बेसहारा गौवंश को आसियाना दिया है। इन बेसहारा गौवंश को बाजार में लठ्ठ खाने को लेकर कही न कही हमारा भी हाथ है। जब तक गौवंश दूध देता है तब तक उसके बछड़े को रखा जाता है तत्पश्चात उसे बाहर निकाल दिया जाता है। इन नंदी वंश की वजह से अनगिनत आदमी अपाहिज हो चुके हैं और कुछ तो भगवान को प्यारे भी हो गये। गौवंश को बचाने के लिए बहुत बड़ी बड़ी बाते होती है, सरकार भी बहुत दावे करती है लेकिन यह सब अखबारों की सुर्खियों तक ही सीमित है, धरातल पर कुछ भी दिखाई नहीं देता। इसलिए स्थानीय गौशाला संचालक गौसेवा के जुड़े स्वांग न करें व बेसहारा गौवंश को सहारा देकर पुण्य कमाएं, यही भामाशाहों द्वारा दी गई आर्थिक सहयोग का सही सदुपयोग होगा। गौशाला की आड़ में डेयरी का संचालन न करे।
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