जयपुर (अतुल जैन): निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) को लेकर हर साल विवाद खड़े होते है और यह विवाद राज्य सरकार और निजी स्कूलों के बीच होते है किंतु इनका शिकार अभिभावकों और विद्यार्थियों को बनने पर मजबूर होना पड़ता है क्योंकि अभिभावक दर-दर ठोकर खाकर, ईमित्र केंद्रों के चक्कर काटकर जाति, इनकम, मेडिकल प्रमाण पत्र सहित विभिन्न जरूरी दस्तावेजों पर हजारों रु खर्च कर अपने बच्चों के बेहतर भविष्य की कल्पना कर योजना का लाभ उठाने की कोशिश करते है लेकिन निजी स्कूलों की हठधर्मिता हर साल नया विवाद खड़ा कर कोर्ट में जाकर उनकी कल्पनाओं को निराशा में बदलकर खामियाजा भुगतने पर मजबूर कर देते है। संयुक्त अभिभावक संघ ने राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश को सम्मान की नजर से तो देखा किंतु फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा कि गरीब और जरूरतमंदों के शिक्षा एक मजाक बनकर उनके साथ हो रहे खिलवाड़ पर हंसी का पात्र बनकर रह गई है, हर साल स्कूलों द्वारा नए-नए विवाद खड़े कर दिए जाते है और विद्यार्थियों को शिक्षा से वंचित कर दिया जाता है। जबकि हकीकत में वर्तमान में आरटीई कानून में संशोधन की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। जबसे यह कानून बना है इन 14 वर्षों में जो जरूरी बदलाव होने चाहिए थे, वह कभी नहीं किए गए, बल्कि इसकी आड में जरूरतमंदों और गरीब परिवारों को शिक्षा से वंचित रखने के षड्यंत्र लगातार रचे जा रहे है। जरूरतमंद विद्यार्थियों को कैसे शिक्षा से वंचित रखना है यह कानून निजी स्कूलों का प्रमुख हथियार बनकर रह गया है। संयुक्त अभिभावक संघ राजस्थान प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा कि आरटीई को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर कहा कि आदेश पर कोई नाराजगी नहीं है, बस यह फैसला जो आया है, वह अभिभावकों की आशाओं और विद्यार्थियों के बेहतर भविष्य की कल्पना के विरुद्ध आया है। कोर्ट ने तो सबूतों के आधार पर फैसला लिया है तो जाहिर बात है मानवता को तो शर्मशार होना ही पड़ेगा क्योंकि केस की सुनवाई में ना अभिभावक थे और ना ही अभिभावकों का पक्ष रखने वाला कोई था, जिसके दोषी स्वयं अभिभावक है लेकिन हाईकोर्ट को कानून के प्रावधानों पर भी विचार करना चाहिए था और गरीब व जरूरतमंद परिवारों पर भी अपनी दृष्टि डालनी चाहिए थी। संयुक्त अभिभावक संघ को हाईकोर्ट के इस फैसले का बिल्कुल भी स्वागत करता है क्योंकि यह आदेश सीधे तौर पर लाखों विद्यार्थियों को शिक्षा से वंचित करने वाला आदेश है क्योंकि आरटीई के तहत अधिकतर अभिभावकों ने कक्षा 1 में दाखिले का आवेदन दिया है और जिन स्कूलों के लिए यह आवेदन दिए है, वह अधिकतर स्कूल कक्षा नर्सरी से संचालित हो रहे है। अब निजी स्कूल हाईकोर्ट के फैसले का दबाव बनाकर कक्षा 1 के दाखिलों को रिजेक्ट कर देगे, जिस शिक्षा विभाग कोई एक्शन नहीं ले पाएगा और राज्य सरकार भी हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देकर निजी स्कूलों को संरक्षण प्रदान करेंगे। इस साल प्रदेशभर में 3.08 लाख विद्यार्थियों ने आरटीई के तहत आवेदन दिए है, जिसमें से लगभग 2 लाख से अधिक विद्यार्थियों के आवेदन कक्षा 1 के है, जिनके अभिभावकों ने 40-45 करोड़ रु खर्च कर जरूरी दस्तावेज तैयार करवाए जो अब डूबने की कगार पर है। अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा कि संयुक्त अभिभावक संघ की लीगल टीम अधिवक्ता अमित छंगाणी और अधिवक्ता खुशबू शर्मा के नेतृत्व में हाईकोर्ट के आदेश की समीक्षा कर रहे है और जल्द ही पुनर्विचार याचिका के साथ-साथ आरटीई में जरूरी बदलाव के लिए पीआईएल लगाने की तैयारी कर रहे है। शिक्षा पर प्रत्येक नागरिक का अधिकार है, जिसकी व्यवस्था की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकार को सुनिश्चित करनी ही होगी। बेशक एकजुटता की दृष्टि से अभिभावक सबसे कमजोर वर्ग है, इसलिए देश की राजनीति में इनको महत्व नहीं मिलता लेकिन संयुक्त अभिभावक संघ अभिभावकों और शिक्षा को महत्व दिलवाने के लिए लगातार संघर्ष जारी रखेगा।
RTE में चल रही 14 सालों की अनदेखी, अब बना निजी स्कूलों का प्रमुख हथियार: संयुक्त अभिभावक संघ
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May 03, 2025
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