धार्मिक उपदेश: धर्म कर्म

AYUSH ANTIMA
By -
0


डरिये रे डरिये, परमेश्‍वर तैं डरिये रे। लेखा लेवै, भर भर देवै, ताथैं बुरा न करिये रे, डरिये॥ सांचा लीजी, सांचा दीजी, सांचा सौदा कीजी रे। सांचा राखी, झूठा नाखी, विष ना पीजी रे॥१॥ निर्मल गहिये, निर्मल रहिये, निर्मल कहिये रे। निर्मल लीजी, निर्मल दीजी, अनत न बहिये रे॥२॥ साहि पठाया, बनिजन आया, जनि डहकावै रे। झूठ न भावै, फेरि पठावै, कीया पावै रे॥३॥ पंथ दुहेला, जाइ अकेला, भार न लीजी रे। दादू मेला, होइ सुहेला, सो कुछ कीजी रे॥४॥
सर्वदा परमेश्वर और पाप कर्मों से डरना चाहिये और हृदय में ईश्वर की धारणा करके अपने जीवन को पूरा करना चाहिये। भगवान् कर्मों का लेखा-जोखा देखकर आगे के जन्म का विधान करते हैं। प्राणियों को अपने कर्मानुसार ही जन्म मिलता है, इसलिये पाप-कर्मों से डरकर उनको त्याग दो, अच्छे कर्म ही करना चाहिये।
लेन-देन का व्यवहार भी सत्य को हृदय में धारण करके ही करना चाहिये कि परमात्मा देख रहा है, मैं क्या कर रहा हूँ। मिथ्या-चिन्तन को त्याग कर सत्य ब्रह्म का ही चिन्तन करो, विषय-विष का पान मत करो।
शुद्ध ब्रह्म की उपासना करो, शुद्ध उपदेश करो और शुद्ध ब्रह्म का ही ध्यान करो। विषयवासनाओं में अपने मन की वृत्ति जाने मत दो, परमात्मा ने आपको जगत् में सत्य व्यवहार के लिये ही भेजा है। अतः विषयों में मन को मत लगाओ। प्रभु मिथ्या व्यवहार को सहन नहीं करते, मिथ्या व्यवहार करने वाला प्रभु से प्रेरित होकर नाना योनियों में जाकर विषयों में ही भ्रमता रहता है। प्रभुप्राप्ति का मार्ग तो बहुत कठिन है। वहां पर अकेला ही जाता है। अतः अशुभ कर्म और सकाम कर्मों का भार अपने शिर पर मत रक्खो, जो कुछ करना है, वह निष्काम भाव से ही करो। विचार भी ऐसा ही करो, जिससे जीव ब्रह्म की एकता हो जाये। उपनिषद् में लिखा है कि –जिनका आचरण अच्छा है, वे अच्छी योनि पावेंगे जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य योनि। जो निषिद्ध आचरण वाले हैं, बुरी योनियों में जायेंगे जैसे कूकर, सूकर, चाण्डाल आदि योनियों में जायेंगे । अतः ईश्वर से डरते हुए अच्छे कर्म ही करने चाहिये ।

Post a Comment

0Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!