कोटपूतली (रमेश बंसल मुन्ना): क्षेत्र के ग्राम मोहनपुरा निवासी सुप्रसिद्ध समाजसेवी, जनप्रतिनिधि व राजनेता मास्टर श्रीराम यादव की प्रथम पुण्यतिथि पर शुक्रवार, 02 मई को ग्राम मोहनपुरा में प्रात: 10 से सायं 04 बजे तक विशाल नि:शुल्क नेत्र चिकित्सा एवं परामर्श शिविर का आयोजन होगा। शिविर में मिश्री देवी अस्पताल, बहरोड़ के सुप्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ.विरेन्द्र सिंह यादव एवं उनकी टीम अपनी सेवायें देगें। इस मौके पर यादव की पुण्य स्मृति में मास्टर श्रीराम यादव चैरिटेबल ट्रस्ट का विमोचन पूर्व सांसद डॉ.करण सिंह यादव, विराटनगर विधायक कुलदीप धनकड़, कोटपूतली विधायक हंसराज पटेल, मुण्डावर विधायक ललित यादव व शाहपुरा विधायक मनीष यादव द्वारा किया जायेगा।
*सामाजिक व राजनैतिक जीवन में बेहद सक्रिय थे यादव*
उल्लेखनीय है कि स्व.श्रीराम यादव क्षेत्र में बेहद प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, साथ ही सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन में भी बेहद सक्रिय थे। शिक्षक पृष्ठभूमि से आने के कारण उनका नाम मास्टर श्रीराम पड़ गया था, जिसके चलते उन्होंने एक शिक्षाविद् के रूप में अपनी पहचान स्थापित की। मास्टर श्रीराम का जन्म ग्राम मोहनपुरा में 01 जनवरी 1949 को कृषक हरसहाय घोघड़ व भगवती देवी के घर हुआ था। बेहद संघर्षपूर्ण वातावरण में कड़ी मेहनत के साथ 20 वर्ष की आयु में ही अपनी शिक्षा पूर्ण कर वर्ष 1969 में राजकीय सेवाओं में अध्यापक बन गये थे। यादव ने शिक्षक संघ के पदाधिकारी के रूप में नर सेवा-नारायण सेवा के ध्येय के साथ शिक्षक अधिकारों के लिये अपनी लड़ाई लड़ी। क्षेत्र में सामाजिक न्याय के लिये संघर्षशील, जुझारू, विनम्र व अपनत्व का भाव रखने वाले मास्टर श्रीराम सामाजिक न्याय शोध संस्थान व राजस्थान यादव महासभा के भी पदाधिकारी रहे। समाज सेवा के कार्य को गति देने के लिये वर्ष 1993 में स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर राजनीति के मैदान में कूद पड़े एवं विधानसभा का चुनाव लड़ा। कभी हार ना मानने के अपने स्वभाव के चलते वे वर्षो तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी कार्यसमिति के सदस्य रहते हुये समाज से कुरीतियों को दूर करने के लिये भी प्रयासरत रहे। विशेष रूप से कृषक परिवारों में शिक्षा के साथ-साथ बालिका शिक्षा को आगे बढ़ाने, मृत्यु भोज व नशे जैसी कुरीतियों को दूर करने के लिये भी संघर्ष किया। यादव समाज में लोगों के आपसी विवाद राजीनामे से हल करवाने के लिये भी जाने जाते थे। इसके लिये वे सभी जातियों में अपनी विशिष्ठ पहचान भी रखते थे।