मां के बारे मे क्या लिखूं, मां की ही तो लिखावट हूं मैं।
भरकर रंग सांचे में ढाला,
मां की ही तो बनावट हूं मैं।।
ख़ुद को मिटा हमें संवारती,
मां की ही तो सजावट हूं मैं।
शब्दकोश के शब्दों से परे हैं मां की परिभाषा, बिन कहे सुन लेती मां आह! और वाह! की भाषा।।
जब चारों तरफ नजर आए निराशा, तमस में जुड़ जाती हैं मां से आशा।।
मां, मां हैं, मां से हैं वजूद,
कतरे कतरे में है, उसका अंश मौजूद। सदा मंगलकारी होता हैं,
मां का मकसूद, छुपा आंचल में साया, रखती है महफूज।।
सृष्टि रची करतार ने, सब समा गया मां में। रक्षा का जिम्मा था उसका, मोर्चा संभाल लिया मां ने।। मैं अपने छोटे से मुख से कैसे करूं तेरा गुणगान, मां तेरी समता में फीका सा लगता भगवान।। तेरे बिना ज़िंदगी है सुनसान, कहे मृदुला, मां बहुत अनमोल है, होता जिससे रोशन जहान।।