वेद से विज्ञान तक: वेदवाणी शोधपत्रिका का

AYUSH ANTIMA
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नई दिल्ली (श्रीराम इंदौरिया): संस्कृत एवं भारतीय ज्ञान परम्परा के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान देने वाली वेदवाणी शोध पत्रिका आज भी अपनी प्रतिष्ठा एवं प्रामाणिकता के साथ शोध जगत का मार्गदर्शन कर रही है। यह शोध पत्रिका संस्कृत की दृष्टि से भारतवर्ष की सबसे प्राचीन पत्रिकाओं में अग्रगण्य है। सन्‌ 1948 से प्रारम्भ यह शोध पत्रिका भारतीय पत्रिकाओं में अपनी दीर्घकालीन सातत्यपूर्ण प्रकाशन-परम्परा के लिए विशिष्ट स्थान रखती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त (ISSN : 2457-0141) वेदवाणी एक मासिक शोध पत्रिका है, जो विगत 78 वर्षों से अविराम प्रकाशित हो रही है। वेदवाणी का प्रकाशन सुप्रसिद्ध रामलाल कपूर ट्रस्ट द्वारा किया जाता है और यह हर महीने की प्रथम तिथि को समर्पित भाव से शोधार्थियों तक पहुँचाई जाती है। इसमें वेद, वैदिक साहित्य, दर्शन, वेदाङ्ग तथा भारतीय ज्ञान परम्परा से सम्बंधित उच्चस्तरीय, प्रामाणिक तथा शोधपरक लेख प्रकाशित किए जाते हैं, जो आध्यात्मिक, सामाजिक एवं अकादमिक दृष्टिकोण से अत्यंत उपयोगी हैं। पत्रिका के प्रधान सम्पादक सुप्रसिद्ध वैयाकरण प्रदीप कुमार शास्त्री हैं। सम्पादक मण्डल में देश के विभिन्न भागों से प्रतिष्ठित विद्वान जुड़े हैं, जिनमें हरिद्वार से प्रो.राम प्रकाश वर्णी एवं प्रो.दिनेश चन्द्र शास्त्री, हरियाणा से राम कुमार शास्त्री एवं विश्वम्भर शास्त्री, प्रयागराज से प्रो.देवदत्त सरोदे, अजमेर से चेयर प्रोफेसर नरेश धीमान, दिल्ली से डॉ.प्रमोद कुमार सिंह, इग्नू से डॉ.अवधेश कुमार एवं जम्बू से डॉ.सत्यप्रिय आर्य सम्मिलित हैं। सम्पूर्ण भारतवर्ष में इस पत्रिका का व्यापक प्रचार-प्रसार है। डॉ.अवधेश कुमार के अनुसार, वेदवाणी शोधपत्रिका अपनी गौरवशाली प्राचीनता के साथ-साथ समकालीन शोध मानकों एवं दिशानिर्देशों का भी पूर्णतः पालन करती है। गौरतलब है कि हाल ही में यूजीसी ने यूजीसी-केयर जर्नल सूची को समाप्त करते हुए शोधपत्रिकाओं के चयन हेतु नई नियमावली और नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इस निर्णय का उद्देश्य शोध-गुणवत्ता में अभूतपूर्व सुधार लाना, शोध-प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाना तथा शोधार्थियों को स्वतंत्र एवं उपयुक्त प्रकाशन विकल्प उपलब्ध कराना है। यूजीसी ने स्पष्ट किया है कि अब वही शोध पत्रिकाएँ मान्य होंगी, जो गुणवत्ता, पारदर्शिता एवं इन नए मूल्यांकन प्रक्रियाओं पर खरी उतरती हों। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी इन नवीन दिशा-निर्देशों के आलोक में, वेदवाणी शोधपत्रिका पूर्णतः निर्धारित मानकों का पालन करती है। इन उच्च मानकों के अनुरूप कार्य करते हुए, वेदवाणी आज शोधार्थियों एवं विद्वानों के लिए सर्वाधिक विश्वसनीय प्रकाशकीय मंच बन गई है। यहाँ प्रत्येक शोधलेख चयनित करने से पूर्व गहन परीक्षण एवं सम्यक पीयर-रिव्यू प्रक्रिया से गुजरता है, जिससे पत्रिका की विद्वतापरकता और प्रामाणिकता अक्षुण्ण बनी रहती है। इसी कारण शोध-पत्र प्रकाशन हेतु लेखकों की एक दीर्घ प्रतीक्षा सूची सदैव बनी रहती है। वेदवाणी शोध पत्रिका ने इन सभी मानकों को सम्यक आत्मसात करते हुए शोध-जगत में अपनी विशिष्ट पहचान और सर्वोच्च स्थान सुनिश्चित किया है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि वेदवाणी शोध पत्रिका संस्कृत तथा भारतीय ज्ञान परम्परा के क्षेत्र में शोधार्थियों, अध्येताओं एवं विद्वानों के लिए एक अमूल्य निधि सिद्ध हो रही है, जो अपनी प्रामाणिकता, उत्कृष्टता एवं सतत नवाचार के साथ शोध-जगत को समृद्ध कर रही है।

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