बोधि भूमि पर न्याय की प्रतीक्षा

AYUSH ANTIMA
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गाजियाबाद/यूपी (रविंद्र आर्य): बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर, जो विश्वभर के बौद्धों के लिए सबसे पवित्र स्थल है, 1949 के एक अधिनियम के तहत आज भी हिंदू-बौद्ध संयुक्त प्रबंधन में है। भारत में बौद्ध धर्म के पुनर्जागरण और वैश्विक बौद्ध समर्थन के बावजूद, बौद्ध समुदाय को इस मंदिर का पूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण अब तक प्राप्त नहीं हुआ है। नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित और महाबोधि इंटरनेशनल मेडिटेशन सेंटर के संस्थापक भिक्षु संघसेन का कहना है कि जिस प्रकार अन्य धार्मिक स्थल—जैसे राम मंदिर या जामा मस्जिद—उनके अपने अनुयायियों द्वारा संचालित किए जाते हैं, उसी तरह महाबोधि मंदिर का संचालन भी केवल बौद्धों के हाथ में होना चाहिए। वे इस मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए एक उच्च स्तरीय समिति के गठन की मांग करते हैं। भारत, जो बौद्ध धर्म की जन्मभूमि है और बौद्ध देशों का एक प्रमुख कूटनीतिक सहयोगी भी है, उसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जिम्मेदारी है कि वह इस वैश्विक धरोहर स्थल पर बौद्धों की प्रधानता सुनिश्चित करे। यह केवल प्रबंधन का सवाल नहीं है—यह न्याय, विरासत और वैश्विक विश्वसनीयता का विषय है, भिक्षु संघसेन कहते हैं।

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