(आयुष अंतिमा नेटवर्क)
“जो सतत राम के नाम में रमे, वही संसार की विषम परिस्थितियों में भी अडिग रहे-ऐसा ही है हनुमान चरित्र।”
हनुमान जन्मोत्सव केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि हर युग में मानव को मार्ग दिखाने वाला प्रकाश पर्व है। आज जब कलयुग की दौड़ में व्यक्ति स्वार्थ, भय, भ्रम और असंतुलन से घिरा हुआ है, तब हनुमान जी की जीवन गाथा एक संजीवनी बनकर सामने आती है।
*प्रबंधन का पर्याय: कार्य में दक्षता और संकल्प*
हनुमान जी को कोई भी कार्य बताया जाए-चाहे वह संजीवनी लाना हो, लंका में प्रवेश करना हो या विभीषण को राम से मिलवाना-उनका दृष्टिकोण सदा एक समान रहता है: “जो करना है, उसे पूरे मन और एकाग्रता से करना है।”
आज के नेताओं, शिक्षकों और संस्थान प्रमुखों के लिए यह सबसे बड़ा पाठ है-स्पष्ट लक्ष्य, त्वरित निर्णय और परिणाम केंद्रित योजना ही सफलता की कुंजी है।
*जीवन जीने की कला: संयम, सेवा और साहस*
हनुमान जी का जीवन ऐसा है, जिसमें शक्ति है लेकिन अहंकार नहीं, ज्ञान है लेकिन अभिमान नहीं और सामर्थ्य है लेकिन आज्ञाकारिता सर्वोपरि।
वर्तमान पीढ़ी के लिए यह एक संदेश है कि असली शक्ति, सेवा और संयम में है। जहाँ विवेक और सेवा की भावना होती है, वहाँ हनुमान जैसा चरित्र बनता है।
*शिक्षक और छात्र के लिए आदर्श*
हनुमान जी ने सूर्य देव को गुरु मानकर शिक्षा प्राप्त की।
उनकी श्रद्धा, विनम्रता और समर्पण आज के शिक्षा जगत के लिए एक आदर्श है।
शिक्षक हनुमान जैसे धैर्य और मार्गदर्शन के प्रतीक बनें और विद्यार्थी हनुमान जैसी लगन, अनुशासन और आत्मबल अपनाएँ।
*तकनीकी युग में हनुमान जी की प्रासंगिकता*
जब डिजिटल युग में ध्यान भंग, तनाव और अवसाद आम होता जा रहा है तब हनुमान जी की “एक बाण साधना”, “मौन तपस्या” और “लक्ष्य सिद्धि” हमें सिखाते हैं कि-भीतर की शक्ति को पहचानो, मन को स्थिर करो और जीवन को अर्थ दो।
*प्रशासन और प्रबंधन को संदेश*
हनुमान जी बिना दिखावे के, प्रभावी कार्यकर्ता और अदृश्य नेतृत्वकर्ता हैं। रामराज्य के प्रत्येक निर्णय में, उनकी उपस्थिति भले ही प्रत्यक्ष न हो, पर उनकी भूमिका मूल रही।
आज के संस्थागत, शासकीय और शैक्षिक प्रबंधन को उनसे यह सीखना चाहिए-कैसे सेवा भाव से, बिना प्रचार के, समाज का उत्थान किया जाए।
*निष्कर्ष*
हनुमान जी केवल पूजनीय नहीं, जीवन में उतारने योग्य चरित्र हैं।
उनका जन्मोत्सव मनाने का अर्थ है-उनके गुणों को अपनाना, जीवन में लक्ष्य तय करना और विनम्रता से सेवा में लग जाना।
“बल में विनम्रता हो, बुद्धि में सेवा हो और जीवन में लक्ष्य हो तो हर युग में विजय निश्चित है।”
हनुमान जन्मोत्सव पर यही संकल्प लें कि हम अपने भीतर की शक्ति, श्रद्धा और सेवा भावना को जागृत करें।