अलवर (मनीष अरोड़ा): संविधान में मूलभूत अधिकारों के तहत शिक्षा का अधिकार सम्मिलित किया गया, जिसमें कि देश के प्रत्येक नागरिक को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार संविधान के द्वारा मिला हुआ है। राजस्थान सरकार ने प्रदेश के प्राइवेट स्कूलों में गरीब बालकों के लिए 25 प्रतिशत सीटें निर्धारित की है, जिनमें गरीब परिवारों के बालकों को मुफ्त शिक्षा सरकार के द्वारा दी जाएगी लेकिन अलवर जिले में सरकारी नियमों को धत्ता बताते हुए शिक्षा विभाग न जाने किस पैटर्न पर बच्चों के दाखिले प्राइवेट स्कूलों में कर रहा है। अभिभावक जब जिले के शिक्षा विभाग के मुखिया के पास पहुंचते हैं कि उनके बच्चे का दाखिला लिस्ट में नाम आने के बाद क्यों नहीं हो रहा तो उन्हें यह जवाब मिलता है कि पहले उस वार्ड के बच्चे का दाखिला होगा, जिस वार्ड में वह प्राइवेट स्कूल है। बाद में बाहरी वार्डों के बच्चों का दाखिला होगा, वही जब अभिभावक विकल्प सूची में दिये गए स्कूलों में जाकर संपर्क करते हैं तो प्राइवेट स्कूल संचालक अभिभावकों को संतोषजनक जवाब नहीं देते। इस तरह जिले में संचालित प्राइवेट स्कूल आरटीई निशुल्क शिक्षा नियमों की खुलेआम उड़ा धज्जियां रहे है। शहर में संचालित प्राइवेट स्कूल आरटीई के तहत आनलाइन आवेदनों पर आब्जेक्शन लगाकर पेंडिंग में डाल रहे बच्चों के परिजनों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वास्तविकता यह है कि वास्तव में निर्धन जरूरतमंद बच्चों को अच्छी स्कूल में प्रवेश नहीं मिल पा रहा है। शिक्षा को लेकर राजस्थान सरकार के दावे खोखले साबित होते नजर आ रहे है। RTE के तहत प्रदेश सरकार की यह स्पष्ट गाइडलाइन है कि प्राइवेट स्कूलों में जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा मुफ्त दी जाएगी। इसके लिए सीटें भी निर्धारित की गई है, जिनमें प्रति वर्ष दाखिले की प्रक्रिया पूरी की जाती है लेकिन इस वर्ष शिक्षा विभाग आखिर जरूरतमंद बालकों का दाखिला क्यों नहीं कर पा रहा है, यह एक बड़ा सवाल है। एक महिला अभिभावक वीना रानी ने बताया कि उनके पति की कमाई बहुत कम है, पति की आमदनी ज्यादा अच्छी ना होने के कारण उनके घर का गुजारा ही बड़ी मुश्किल से चल पाता है, ऐसे में शिक्षा के अधिकार के नियम के तहत उनका बच्चा अगर अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढ़ जाता है तो उसका भविष्य बन जाएगा। महिला ने बताया कि ई मित्र द्वारा मेरे बेटे का प्रथम कक्षा में आरटीई निशुल्क शिक्षा के तहत आवेदन किया था, जिसमें एक स्कूल चिन्हित कर आवेदन करने का आप्शन भरा गया लेकिन स्कूल संचालक द्वारा उसमें ऑब्जेक्शन डाला कि पहले ग्रामीण बच्चों का प्रवेश लिया जायेगा बाद में जगह बची तो देखा जायेगा, जबकि यह स्कूल अलवर शहर के दायरे में आती है। इस बात को लेकर जब जिला शिक्षा अधिकारी से पूछा गया तो उन्होंने वार्ड के द्वारा ऐडमिशन लेने की बात बताई जो समझ से परे है। दरअसल, सरकारी योजना की बानगी तो बड़ी-बड़ी होती है लेकिन धरातल पर वह योजना जरूरतमंद तक कितनी पहुंचती है यह बड़ा स्पष्ट नजर आ रहा है। अगर धरातल पर योजनाएं सही चल रही है तो जिले के शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों के पास इस बात का सही जवाब क्यों नहीं है कि लिस्ट में आए बालकों का दाखिला आखिर संबंधित स्कूलों में क्यों नहीं हो रहा है।
शिक्षा का अधिकार नियम बना महज़ दिखावा, वास्तविक जरूरतमंदों तक लाभ नहीं पहुंच रहा
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April 26, 2025
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