समाज के लोगों की विडंबना

AYUSH ANTIMA
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जब कोई व्यक्ति विधायक, सांसद या उच्च पद पर आसीन हो जाता है तो सोशल मीडिया पर बाढ आ जाती है कि अमुक व्यक्ति ने समाज को गौरवान्वित किया, हमें उन पर नाज है। अमुक विधायक या सांसद बन गया, यह हमारे समाज के लिए गौरवशाली इतिहास है कि समाज का विधानसभा में प्रतिनिधित्व करेगा लेकिन कहा गया है कि आदमी सभी बढ़िया होते हैं, जब तक काम न पड़े। मैं यदि विप्र समाज की बात करूं तो‌ विधायक बनने के बाद इतना बदलाव आ जाता है, जैसे आजीवन इस कुर्सी पर रहने वाले है लेकिन प्रजातांत्रिक व्यवस्था में हर पांच साल बाद चुनाव आते हैं लेकिन बिल्ली के भाग्य से छींका हर बार नहीं टूटता, इसका उनको भान होना चाहिए। हां एक बार विधायक बनकर आप आजीवन पैसन पक्की कर सकते हैं। जब कभी विप्र समाज का सम्मेलन होता है तो ऐसे महानुभावों के मुखारबिंद से विप्र समाज के उत्थान के ऐसे शब्द निकलते है कि ऐसा लगता है कि इन्होंने जन्म ही समाज उत्थान के लिए लिया है लेकिन जब कोई समाज हित की बात आती है तो पहचानने से तो मना कर देते हैं, इतना ही नहीं समाज के किसी आयोजन में आना अपनी बेइज्जती महसूस करते हैं। विदित हो राजस्थान में मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने जब सरकार की कमान संभाली तो विप्र समाज के महानुभावों की सोशल मिडिया पर बाढ़ आ गई कि भाजपा ने विप्र समाज को सम्मान दिया है। यहां तक शेखावाटी की धरा से उन्हें पंडित भजन लाल शर्मा से अलंकृत भी किया गया था लेकिन दुर्भाग्य उसी शेखावाटी की धरा से जीणमाता के पुजारी से दुर्व्यवहार करने के समाचार आ रहे हैं, इसको लेकर विप्र समाज का आक्रोशित होना स्वाभाविक है लेकिन सत्ता में बैठै विप्रो के सरमायदारो ने विप्र समाज की उसी परम्परा का निर्वहन किया, जिसको लेकर विप्र समाज जाना जाता रहा है कि उच्च पद पर आसीन हो जाने के बाद समाज के लोगों में उनको बदबू आने लग जाती है लेकिन उनको इस बात का अवश्य भान होना चाहिए कि यह न सोचें कि समाज ने हमें क्या दिया है लेकिन यह सोच रखनी चाहिए कि हम समाज को क्या दे रहे हैं। विप्र समाज के पिछड़ेपन का यही एक मुख्य कारण है कि उच्च पद पर आसीन समाज का महानुभाव समाज को कुछ नहीं समझता लेकिन जब कुर्सी से मुक्त हो जाता है तब उनके मन में समाजहित का भाव हिलोरें मारने लगता है लेकिन उस समय तक डोर हाथ से छूट जाती है व समाज उनकी कारगुजारियों को ध्यान में रखकर उन्हें कोई तवज्जो नहीं देता। विप्र समाज के उन मठाधीशों को ध्यान में रखना होगा कि संगठन में ही शक्ति निहित होती। छिन्न भिन्न समाज कभी भी प्रगति नहीं कर सकता। जीण माता मंदिर प्रकरण का स्पष्ट उदाहरण है कि आज तक दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। समाज हित को सर्वोपरि रखने वाले महानुभावों व सरकार में उच्च पद पर आसीन माननीयो की तरफ विप्र समाज कातर नजरों से देख रहा है कि क्या अन्य समाज से प्रेरणा लेगे या वहीं परम्परा का निर्वहन करेंगे, जिसके लिए विप्र समाज जाना जाता है।

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