पहलगाम में आतंकियों द्वारा धर्म पूछकर किए गये नरसंहार को लेकर पूरा देश क्षुब्ध है। आक्रोशित जनमानस प्रदर्शन व बंद करवाकर अपनी अभिव्यक्ति सरकार तक पहुंचा रहा है लेकिन भारतीय इलैक्ट्रिक मिडिया का एक वर्ग यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि इस दुखान्तिका को लेकर कश्मीरी मुसलमान बहुत दुखी हैं। कुछ कश्मीरी मुसलमान को तो रोते हुए दिखाया जा रहा है कि हिन्दुओं की हत्या से उन्हें बहुत गम है। वैसे इलैक्ट्रोनिक मीडिया की संवेदनशीलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सीमा हैदर उनको राष्ट्रीय संपति नजर आ रही है जो उसके बच्चे होने की खबर को भी प्रमुखता से दिखाया था। यदि हिन्दुओं की हत्या को लेकर कश्मीरी इतने ही गमगीन है तो 90 के दशक में 4 लाख हिन्दुओं को प्रताड़ित करके घाटी से भगा दिया था, जब इनकी संवेदनशीलता कहा चली गई थी। इन कशमिरीयो को शायद पता होगा कि हिन्दू महिलाओं पर कैसे कैसे अत्याचार हुए थे। जब आज पूरी घाटी हिन्दू विहीन हो गई तब इनके मन में हिन्दुओं के प्रति प्रेम का सागर उमड़कर आंखों के जरिए बाहर आ रहा है। उस समय इन कशमिरीयो की संवेदना कहां मर गई थी, जब हिन्दू महिलाओं पर अनाचार हो रहे थे। यह सर्व विदित है कि बिना स्थानीय लोगों की सहायता बिना किसी भी आतंकी घटना को अंजाम नहीं दिया जा सकता है। इन कशमीरीयो के लिए गम की बात हिन्दुओं की हत्या नहीं बल्कि रोटी का जुगाड है, जिनके कारण इनका चूल्हा जलता था। हिन्दुओं के नरसंहार को लेकर घड़ियाली आंसू बहाना तो वहीं हुआ कि पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को 17 बार हराकर जीवनदान दिया लेकिन क्रूर मौहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान के साथ क्या सलूक किया था, यह इतिहास के पन्नों में दर्ज है। आज घाटी के मुसलमान जो टीवी चैनलों पर घड़ियाली आंसू बहाने का स्वांग कर रहे हैं, उनको इस बात का अहसास है कि मोदी के नेतृत्व वाली सरकार निश्चित रूप से कोई प्रभावी कार्यवाही करेगी, जिसका खामियाजा घाटी के लोगों को भी भुगतना होगा क्योंकि उनके जीवनयापन का एकमात्र जरिया हिन्दू पर्यटक ही है। कश्मीरी मुसलमानो को भली-भांति पता है कि घाटी में खुशहाली तभी आयेगी जब तक पर्यटकों के रूप में हिन्दुओं की आवाजाही घाटी में बनी रहे। हिन्दुओं को भगाकर कश्मीरी सकून से नहीं रह सकते। इसका जीवंत उदाहरण पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश व पाकिस्तान का कब्जे वाला कश्मीर है, जहां के मुसलमानो की दशा देखी जा सकती है। यदि हिन्दुओं के प्रति हमदर्दी होती तो घाटी हिन्दूविहीन नहीं होती यह केवल इनके घड़ियाली आंसू हैं ।
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