पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव में जयकारों के साथ हुई ज्ञान कल्याण की क्रियाएं

AYUSH ANTIMA
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जयपुर: अर्हम योग प्रणेता मुनि प्रणम्य सागर महाराज के सान्निध्य में हीरापथ के श्री नेमीनाथ दिगंबर जैन मंदिर में 6 दिवसीय श्रीमज्जिनेन्द्र आदिनाथ  जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव के पांचवें दिन ज्ञान कल्याणक की क्रियाएं हुईं। श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन समाज समिति के अध्यक्ष धन कुमार कासलीवाल एवं मंत्री सुरेन्द्र कुमार जैन ने बताया कि प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी नितिन भैया खुरई एवं सह प्रतिष्ठाचार्य अमित वास्तु और शुभम शास्त्री के निर्देशन में ज्ञान कल्याणक की क्रियाएं हुईं। जिनेंन्द्र दर्शन और अभिषेक के बाद शांतिधारा की गई नित्य पूजा एवं तप कल्याणक पूजा की गई। मुनि प्रणम्य सागर महाराज ने प्रवचन में कहा कि भावों की विशुद्धि ही जीवन में उज्जवलता का निर्धारण करती है। कार्य को सुधारना हो तो कारण को सुधार लिया जाए। श्रेष्ठी होना एवं श्रावक होना दोनों अलग-अलग है। मनुष्य को श्रेष्ठता और मद का बखान नहीं करना चाहिए। कम पुरुषार्थ में अधिक लाभ होना पुण्य का ही फल है। अपने जीवन में पुरुषार्थ के साथ पुण्य बढ़ाने पर भी ध्यान देना चाहिए। जीवन में संयम साथ में हो तो पाप का खाता बंद तथा जीवन में पुण्य ही पुण्य होता है। वैभव कमाने से नहीं पुण्य के फल से मिलता है। बाह्य वैभव से ज्यादा अंतरंग वैभव का महत्व होता है। बुधवार को मोक्ष कल्याणक के बाद विश्व शांति महायज्ञ होगा। अन्त में रथयात्रा के साथ श्री जी को नवीन वेदियों में विराजमान किया जाएगा।

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