पिलानी को विश्व के प्रसिद्ध उद्योगपति स्वर्गीय घनश्याम दास बिड़ला (जीडी बाबू) की जन्मस्थली होने का गौरव हासिल है। जीडी बाबू का अपनी मातृभूमि से लगाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिलानी व आसपास के लोगों के लिए उत्तम व सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए बिरला सार्वजनिक अस्पताल व उत्तम व सस्ती शिक्षा के लिए बिरला एज्युकेशन ट्रस्ट की स्थापना की। जीडी बाबू पिलानी को शिक्षा के क्षेत्र में सिरमौर बनाने के लिए श्रद्धेय शुकदेव जी पांडे को इसकी कमान सौंपी। पांडे जी ने बिरला एज्युकेशन ट्रस्ट के अधीन अनेकों स्कूल खोले, जिससे पिलानी व आसपास के गांवों के लोगों को उत्तम व सस्ती शिक्षा उपलब्ध हो। इसी का परिणाम था कि पिलानी शिक्षा नगरी के नाम से विख्यात हो गई। पिलानी ने अनगिनत प्रतिभाएं देश को दी, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में देश को अपनी सेवाएं देकर पिलानी का नाम गौरवान्वित किया। यहां की स्कूलों में बिरला पब्लिक स्कूल, बिरला बालिका विद्यापीठ, बिरला हायर सैकेंडरी स्कूल के अलावा दर्जनों स्कूले थी, जो बिरला एज्युकेशन ट्रस्ट के अन्तर्गत व पांडेजी के कुशल प्रशासन में संचालित होती थी। भारत के विभिन्न राज्यो से यहां बच्चे शिक्षा ग्रहण कर खुद को गौरवशाली महसूस करते थे।
समय बदला कहते हैं कि राजा वहीं कुशल शासक होता है, जिसके सिपहसालार सच्चे व ईमानदार होते हैं क्योंकि राजा अपने सिपहसालारों की सूचनाओं पर ही निर्णय लेता है। यह बात बिरला एज्युकेशन ट्रस्ट पर सही साबित क्योंकि ट्रस्ट की कमान चाटुकारिता करने वाले कारिंदों के हाथ में आ गई, जिसका परिणाम यह हुआ कि जो दर्जनों स्कूले पिलानी व आसपास के लड़के व बालिकाओं के लिए संचालित थी, उनसे अपने हाथ खींच लिए, जिस कारण वे या तो बंद हो गई या बंद होने के कगार पर है। स्पोर्ट्स व सांस्कृतिक गतिविधियां बंद हो गई। जिस स्कूलो से राज्य व राष्ट्रीय स्तर के हाकी, बालीबाल, फुटबाल व एथलेटिक्स निकलते थे, उनका टोटा पड़ गया। जिन कारिंदों के हाथों में ट्रस्ट की कमान सौपी, उसका यह नतीजा है कि जिन स्कूलों में एडमिशन के लिए लोग लालायित रहते थे, उनमें एडमिशनो का टोटा पड़ गया। ऐसे लोगों को रखा गया, जो ऐसे कामों में लिप्त है, जिनको हमारा सभ्य समाज मान्यता नहीं देता, ऐसे व्यक्तियों को प्रमोशन दिया गया। स्वर्गीय जीडी बाबू व स्वर्गीय शुकदेव पांडे जी ने जो शिक्षा का पौधा लगाकर वट वृक्ष का रूप दिया था, वह गिरने की कगार पर है, उसका मूल कारण कमान ऐसे कारिंदों के हाथ में है, जो केवल अपने निजी हित साधने में व्यस्त हैं व जीडी बाबू की साख को बट्टा लगा रहे हैं। स्वर्ग में उनकी आत्मा शायद दुखी होगी की शिक्षा नगरी का जो स्वरूप उन्होंने दिया था, वह लगभग खात्मे की ओर है।
*क्रमशः शेष अगली कड़ी में ...........*