राजस्थान की एक सरकारी स्कूल का एक बहुत ही शर्मसार करने वाला विडियो सोशल मिडिया पर वायरल हो रहा है। जिसमें स्कूल का प्रिंसिपल व एक महिला अध्यापिका की अश्लील व आपत्तिजनक हरकतें वहां लगे सीसीटीवी में कैद होने के साथ ही सोशल मिडिया पर वायरल हो गई। ऐसी अश्लील हरकतों का हमारे सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है और खासकर मां सरस्वती के उस पावन मंदिर में जहां हमारे बच्चे शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं। भारत में एक ऐसा कालखंड भी रहा है कि गुरू का दर्जा माता पिता से भी बड़ा माना जाता था क्योंकि माता पिता तो संसार में लाने वाले हैं लेकिन उस कच्चे घड़े को तराशने का काम गुरू ही करता था। ऐसी सनातनी परम्परा को कलंकित करने वाला कृत्य भी उस वीर धरा पर हुआ है, जिस धरा को महिलाओं की आन-बान के रक्षक महाराणा प्रताप ने सुशोभित किया था। इस घटना ने पूरे राजस्थान को इतना कलंकित किया है, जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती। जब रक्षक ही भक्षक बन जाते हैं तो उस समाज को बचाने वाला शायद ही कोई हो। हालांकि राज्य सरकार ने उस कामुक प्रिंसिपल व अध्यापिका को निलंबित कर खानापूर्ति की है लेकिन उन दोनों का निलंबन क्या इस दाग को धो पाएगा। एक तरफ सरकार महिला सशक्तीकरण के बड़े बडे दावे करने के साथ ही महिलाओं का उनके कार्य स्थल पर भी संरक्षण के दावे देखने को मिलते हैं, इसके विपरीत यदि सरकारी महकमे और वह भी ऐसा स्थान, जिसको हमारे सभ्य समाज ने उच्च व प्रतिष्ठित स्थान से नवाजा है, वहां ऐसी हरकते समाज के हृदय पटल को लहुलुहान करने वाली है। एक तरफ सरकारी स्कूलों में वैसे ही नामांकन का टोटा पड़ा हुआ है व ऐसी असभ्य हरकतें कोढ़ में खाज का काम कर रही है। शिक्षक एक ऐसा प्रतिष्ठित ओहदा, जो देश के लिए प्रतिभाएं तराशने का काम करता है लेकिन ऐसे शिक्षकों से तो प्रतिभाएं तराशी जायेगी, उसका अंदाजा वह विडियो दे रहा है। इस घटना को यदि आधुनिक परिवेश मे सोशल मिडिया पर फैले अश्लीलता के जहर से जोड़कर देखें तो कहीं न कहीं यह प्रतीत होता है कि हमारा समाज उस पाषाण युग में चला गया, जब लोग नंगे घूमते थे। सोशल मिडिया पर सभ्य समाज की महिलाएं ऐसी रील बनाकर सोशल मिडिया पर परोसती हैं, जिनको हमारा समाज मान्यता नहीं देता है। हास्य की आड़ मे भौंडे व शराब को बढ़ावा देने वाली रील की बाढ देखने को मिलती है। उच्च कोटि के साहित्य की अश्लीलता को बढ़ावा दिया जा रहा है। कवि सम्मेलन में भी सरस्वती के मंचों से अश्लील चुटकले ही काव्य पाठ का अंग बन चुका है। सोशल मिडिया पर सरकारी नियंत्रण को लेकर सरकार को गंभीरता से सोचना होगा।
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