दुनिया का रेला फिर भी आदमी अकेला

AYUSH ANTIMA
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विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया का हर छठा आदमी अकेला है। भारत की बात करें तो टूटते रिश्तों की डोर और संवादहीनता के चलते करोड़ों लोग एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसमें सबसे बड़ी विडंबना यह है कि युवा वर्ग इसके शिकार ज्यादा है। इस भौतिकवाद युग के चलते युवा वर्ग की आकांक्षाओं का आसमान बहुत ऊंचा हो गया है। यह देखा गया है कि सामंजस्य की कमी हताशा व आस्वाद को जन्म देती है। सोशल मिडिया की मृग मरीचिका रूपी दुनिया में किसी व्यक्ति के हजारों मित्र हो सकते हैं। आभासी मित्रों का कृत्रिम संवाद हमारी जिंदगी के सवालों का समाधान नहीं हो सकता। कृत्रिम रिश्ते हमारे वास्तविक रिश्ते के ताने-बाने को मजबूत नहीं कर सकते। आधुनिक युग अर्थ प्रधान हो गया है। इस अर्थ युग में रिश्तों को भी अर्थ के तराजू पर तौला जाता है। आम धारणा बन गई है कि जिसके पास पैसा है वह सब कुछ कर सकता है। यही कारण है कि लोगों की सोच संकुचित होने के साथ रिश्ते भी संकुचित हो गये। यही कारण है कि हमारे इर्द-गिर्द सोनल मिडिया की हजारों की भीड़ होने के बावजूद दुनिया के इस रेले में आदमी अकेला है। यदि सच में देखा जाए तो लोग किसी के मन की पीड़ा और कष्ट को लेकर संवेदनशील व्यवहार नहीं करते हैं। हर तरफ कृतिमताओ का बोलबाला है। तीज त्योहार भी अब दिखावा व कृत्रिम सौगातों की भेंट चढ़ गये है। इसको लेकर हमें मंथन करने की जरुरत है कि वे कौन से कारक है, जिनकी वजह से मनुष्य एकाकी होता जा रहा है। विडंबना यह भी है कि कृतिमताओ के चलते हमारे शब्दों की संवेदनाएं मर गई है। एकाकी जीवन का एक मूल कारण संयुक्त परिवारों का विखंडन भी है। अब हमारे का स्थान मेरे ने ले लिया है। जो अपनत्व व मिठास हमारे शब्द में था वह मेरे शब्द में कदापि नहीं हो सकता। संयुक्त परिवार का मुखिया किसी भी तरह के दबाव को झेलने की क्षमता रखता था। अपने उपर आये दबाव को वह अन्य किसी परिवार के सदस्य की तरफ स्थानान्तरण नहीं करता था। परिवार के सभी सदस्य आर्थिक व सामाजिक संकटों का मिल जुलकर मुकाबला करते थे। अब मैं और मेरा परिवार के साथ दोनों पति पत्नी कामकाजी हो गये क्योंकि आधुनिकता की दौड़ ने इन्हें अंधा कर दिया, जिससे बच्चे आस्वाद का शिकार हो गये व एकाकी जीवन की कला में ढल गये। इसके चलते व्यक्ति न केवल समाज व अपने कार्य स्थल पर अलग-थलग हुआ है बल्कि अपने परिवार से भी दूर होता चला गया। नई पीढ़ी में आक्रोश व आकांक्षाएं पूरी न होने के कारण अरूचिकर परिस्थितियों के चलते पहले ही घुटन महसूस कर रही है। सामाजिक जुड़ाव, परिवार में संवाद, शब्दों में शालीनता व लोगों के प्रति संवेदनशीलता ही एकाकीपन को दूर करने में सहायक हो सकती है।

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