शिक्षा का व्यवसायीकरण रोकना होगा

AYUSH ANTIMA
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राजस्थान में खासकर शेखावाटी अंचल के भामाशाहों ने समाजसेवा को ही एकमात्र अपना ध्येय समझा। इसी मंत्र को लेकर उन्होंने अनगिनत धर्मशाला, अस्पताल, कुओं व स्कूल व कालेज खोले। खासकर शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने उल्लेखनीय आयाम स्थापित किए थे क्योंकि शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली सतत प्रक्रिया है, जिससे मनुष्य का बौध्दिक विकास ही नहीं होता बल्कि उसका शारिरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास भी होता है। शिक्षा बिना मानव, बिना पूंछ के पशु के समान होता है क्योंकि शिक्षा ही मनुष्य में सभ्यता और संस्कृति के निर्माण में सहायक होती है लेकिन यह बहुत बड़ी विडंबना है कि भामाशाह का चोला पहनकर आधुनिक भामाशाहों ने शिक्षा को एक समृद्ध व्यापार का रूप दे दिया है। वैसे तो कमोबेश पूरे राजस्थान की यही स्थिति है लेकिन झुंझुनूं जिले में इन कथित भामाशाहों ने शिक्षा को इतना महंगा कर दिया कि यह आम आदमी के लिए सपना बनकर रह गया। फाइव स्टार रूपी इस कल्चर ने शिक्षा को रसातल में धकेलने का काम किया है। हर माता पिता की यह इच्छा रहती है कि उसका बच्चा पढ़ लिखकर काबिल इंसान बने व परिवार का नाम रोशन करें। उनके सपनों को पूरा करने के लिए हमारे देश की शिक्षा देने वाले संस्थानों की अहम भूमिका होती है। इसमे सरकारी शिक्षण संस्थानों की बात करना बेमानी होगी क्योंकि राजनितिक हस्तक्षेप के चलते सरकारी शिक्षण संस्थान केवल शौ पीस बनकर रह गये है। निजी शिक्षण संस्थानों की आड़ में शिक्षा पर शिक्षा माफिया का कब्जा हो गया है, जिसके कारण शिक्षा को पैसे वालों की धरोहर बनाकर छोड़ दिया है। हर गली मौहल्लों में भी दो चार किराये के कमरों में हिन्दी में अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई हो रही है। अभिभावकों की भावनाओं से खिलवाड़ कर यह निजी शिक्षण संस्थान संचालक चांदी कूट रहे हैं। इसी भावना का लाभ उठाकर मनमानी फीस वसूल रहे हैं। एक तरफ शिक्षा की इन दुकानों में ग्राहकों में वृध्दि हो रही है तो दूसरी तरफ उसी अनुपात में हर वर्ष फीस में बढ़ोतरी देखी जा सकती है या यूं कहें शिक्षा के खुले बाजार में लूट मचा रखी है। यह शिक्षा की दुकान अपने ग्राहकों को फंसाने के हर हथकंडे अपनाते देखी गई है, यहां तक कि झूठे विज्ञापन भी प्रकाशित करते है। शिक्षा के इस व्यवसाय में पूरा परिवार लगने के साथ ही अपने किसी रिश्तेदार को स्कूल ड्रेस, बैग, जूते, टाई, कापी व किताब बेचने का ठेका दे देते हैं। शिक्षा देने वाले अप्रशिक्षित शिक्षकों को रखा जाता है जो नाम मात्र के वेतन पर आ जाते हैं क्योंकि देश में बेरोज़गारी का आलम है। शिक्षा के इन कारखानों मे शिक्षा के अलावा सब कुछ मिलता है, बस शिक्षा कोचिंग संस्थानों पर मिलती है जिसका यह पता बता देते है।
शिक्षा के ऐसे हालात देखते हुए सरकार को कदम उठाने होंगे और शिक्षा मौलिक अधिकार व आधार का अक्षरश: पालन अनिवार्य किया जाना चाहिए। सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि आम आदमी को यह शिक्षा के व्यापारी नहीं लूट सके, इसके साथ ही इन दुकानों पर शिक्षा देने के रेट तय करने के साथ ही शिक्षा के व्यवसायीकरण को लेकर गंभीर प्रयास करने होंगे।

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