देशभर से आए 20 आयुर्वेद विशेषज्ञों को मिला 'आयुर्वेद आहार एवं पोषण' का प्रशिक्षण

AYUSH ANTIMA
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जयपुर (श्रीराम इंदौरिया): आयुर्वेद में आहार को चिकित्सा का मूल आधार माना गया है। शरीर, मन और आत्मा की संपूर्ण स्वस्थता के लिए आहार की भूमिका को सर्वोपरि माना जाता है। इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए जोरावर सिंह गेट स्थित राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर के पोषणाहार विभाग द्वारा “आयुर्वेद पोषण के मूल सिद्धांत” विषय पर आधारित 15 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से चयनित 20 आयुर्वेद विशेषज्ञों ने भाग लिया।
कार्यशाला के समापन समारोह में राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के कुलपति प्रो.संजीव शर्मा ने प्रतिभागियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा आयुर्वेद केवल रोगों के उपचार की विधा नहीं, बल्कि एक समग्र जीवनशैली है। इस जीवनशैली का मूल आधार आहार है। जो व्यक्ति अपने शरीर की प्रकृति, ऋतु और स्थान के अनुसार आहार करता है, वह कभी गंभीर रोगों से ग्रसित नहीं होता। इस कार्यशाला के माध्यम से हमने प्रयास किया कि आयुर्वेद आहार विज्ञान को आधुनिक शोध एवं व्यवहारिक प्रशिक्षण के साथ जोड़ा जाए ताकि विशेषज्ञ अपने-अपने क्षेत्रों में इस ज्ञान का अधिकतम उपयोग कर सकें।” शल्य तंत्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर पी. हेमंता ने कहा इस 15 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला में हमने आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों जैसे पंचमहाभूत सिद्धांत, त्रिदोष संतुलन, सात्विक आहार, अष्टाहार विधि आदि को वैज्ञानिक और प्रायोगिक तरीके से समझाया। साथ ही 'किचन फार्मेसी', 'पौष्टिक औषधीय भोजन' और 'स्वदेशी सुपरफूड्स' की भूमिका पर भी चर्चा की गई। 
इंटरडिसिप्लिनरी डीन प्रो.सर्वेश अग्रवाल ने कहा यह प्रशिक्षण कार्यक्रम न केवल एक शैक्षणिक अभ्यास था, बल्कि यह एक जीवनदृष्टि से जुड़ी पहल थी। जब हमारे चिकित्सक आहार को एक दवा के रूप में समझने लगते हैं, तब न केवल रोग का शमन होता है, बल्कि भविष्य की अनेक बीमारियों से भी बचाव संभव हो जाता है। इस कार्यशाला में आयुर्वेद पोषणाहार विभाग के वरिष्ठ विशेषज्ञों में प्रो.दुर्गावती देवी, डॉ.किरण श्रीवास्तव, डॉ.कमला नागर और डॉ.आयुषी ने आयुर्वेद आहार विज्ञान के शास्त्रीय स्रोत (चरक संहिता, सुश्रुत संहिता आदि), रोगानुसार आहार योजना (जैसे मधुमेह, आमवात, अजीर्ण, ह्रदय रोग आदि के लिए विशेष आहार), ऋतुचार्य आधारित आहार विन्यास, अग्नि और दोष संतुलन के अनुसार भोजन विधि, शारीरिक प्रकृति (वात, पित्त, कफ) के अनुसार भोजन चयन, औषधीय वनस्पतियों का पाक कला में उपयोग, किचन फार्मेसी व घरेलू उपचार, खाद्य सुरक्षा और पोषण मूल्यांकन विषय पर प्रतिभागियों को विस्तृत प्रशिक्षण दिया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य चिकित्सकों और आयुर्वेद विशेषज्ञों को आयुर्वेदिक पोषण के शास्त्रीय ज्ञान के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरने वाले दृष्टिकोण से प्रशिक्षित करना था। 15 दिवसीय कार्यशाला में प्रतिभागियों को आयुर्वेद आहार की शुद्ध परिभाषा, आहार नियोजन, ऋतु के अनुसार आहार व्यवस्था, व्याधि विशेष के अनुसार औषधीय आहार का चयन, और स्वस्थ जीवनशैली में आहार की भूमिका जैसे विषयों पर गहन प्रशिक्षण दिया गया। यह कार्यशाला आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से समग्र स्वास्थ्य की अवधारणा को मजबूती प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल थी।

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