सावन की रिमझिम से राजस्थान में ठंडक जरूर है लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दिल्ली मुलाकात ने राजस्थान का सियासी पारा चढ़ा दिया है। सूत्रों की मानें तो यह कहा जा रहा है कि यह मुलाकात औपचारिक थी लेकिन सियासत में औपचारिक मुलाकात कब मुख्य बन जाए कहा नहीं जा सकता। इस मुलाकात की टाइमिंग राजनीतिक विश्लेषक इसे महत्वपूर्ण मान रहे हैं क्योंकि राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा को भी दिल्ली दरबार में तलब किया गया था। वसुंधरा राजे व मोदी की मुलाकात को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि उनके बीच राजस्थान की वर्तमान राजनीतिक स्थिति, संगठन को लेकर भविष्य की रणनीति और आगामी निकाय चुनावों को लेकर चर्चा हुई। अहम बात यह भी है कि इसी दिन गृह मंत्री अमित शाह से राजे की मुलाकात हुई। विदित हो अमित शाह के वर्तमान दौरे में शीर्ष नेतृत्व व राजे के संबंधों में कड़वाहट की बर्फ पिघलती देखी गई थी। राजे को मंचासीन होने के साथ ही अमित शाह ने वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री काल की तारीफ भी की थी। देखा जाए तो वसुंधरा राजे खेमे और संगठन के बीच रिश्ते सहज नहीं रहे हैं। इस मुलाकात को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि राजे को शीर्ष नेतृत्व एक बार राजस्थान में अहम भूमिका देने पर विचार कर सकता है। भाजपा को विधानसभा चुनावों व लोकसभा चुनावों में जरूर सफलता मिली लेकिन वसुंधरा राजे को दरकिनार करने की छाया इन चुनावी परिणामों में जरूर देखने को मिली थी। जिस प्रकार चुनावों मे टिकट बंटवारे को लेकर राजे को तवज्जो न देना तत्पश्चात दिल्ली दरबार से पर्ची द्वारा भजन लाल शर्मा का मनोनयन इस बात का संकेत था कि राजस्थान में अब भाजपा को राजे की जरूरत नहीं है। अचानक राजे का दिल्ली दरबार में दस्तक देने का यह मायने नहीं कि भजन लाल शर्मा को हटाया जायेगा। विदित हो भजन लाल शर्मा सरकार अफसरशाही हावी होने की चुनौती का सामना कर रही है। इस मुलाकात के पीछे एक कारण यह भी हो कि दिल्ली दरबार भजन लाल शर्मा की कार्यशैली व प्रशासन पर पकड़ को लेकर चिंतित हो और विकल्पों की तलाश की जा रही हो लेकिन राजनीति में रिश्तों की खटास कब शहद में परिवर्तित हो जाए, कहा नहीं जा सकता है। वसुंधरा राजे का राजस्थान की राजनीति में कद्दावर नेताओं में शुमार रहा है। कोपभवन में जाने के बावजूद वह सक्रिय रहीं और राजस्थान की राजनीति से दूर नहीं जाने के संकेत समय समय पर देती रही है। धार्मिक आयोजन व यात्राओं की आड़ में अपना शक्ति प्रदर्शन करती रही है। इसके साथ ही सरकार की कार्यशैली को लेकर मुखर रूप से विरोध दर्ज करवाती रही है। चाहे वह उनके क्षेत्र में पानी का मुद्दा हो या झालावाड़ में सरकारी स्कूल की ईमारत ढहने पर दर्दनाक हादसा हो, उन्होंने अफ़सरशाही के हावी होने के आरोप लगाए थे। अब यह तो आने वाला समय ही निर्धारित करेगा कि राजे व मोदी की मुलाकात को लेकर राजस्थान की राजनीति में भूचाल आयेगा या यह केवल औपचारिकता पूरी करने की कवायद ही है।
3/related/default