अलवर (मनीष अरोडा़): बम-बम भोले के नारे और भगवा वस्त्र धारण किए हुए शिव भक्त कावड़िये। मौका नजारा था, हरिद्वार से कावड लेकर लौट रहे कावड़ियों के विश्राम स्थल का। ऐसा माना जाता है कि पूरे वर्ष में सावन मास में भोलेनाथ भक्तों की मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण करते हैं। इसके लिए भक्तजन हरिद्वार से कावड़ लेकर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने की पौराणिक परंपरा है। अलवर शहर में कावड़ियों के लिए कई स्थानों पर विश्राम स्थल बनाए गए, जिनमें अपना घर शालीमार स्थित कावड़ियों के लिए की गई भोजन और विश्राम की विशेष व्यवस्थाओं के चलते कवडिये तारीफ करते नहीं थक रहे थे।
दौसा के पास बांदीकुई क्षेत्र में हरिद्वार से कावड़ लेकर वापस लौट रहे एक कवडिये का कहना था कि भगवान भोलेनाथ की आराधना जीवन में बदलाव लाती है, वह पिछले 25 वर्ष से हरिद्वार से कावड़ लेकर बाबा को स्नान करवाते हैं। वही राजगढ़ से कावड़ लेकर जा रहे एक भोलेनाथ के भक्त ने बताया कि भोलेनाथ की असीम कृपा है, जो प्रतिवर्ष उसे हरिद्वार से कावड़ लाने का अवसर प्राप्त होता है।
कावड़ियों के लिए बनाए गए विश्राम स्थलों में आलीशान शामियाना, टेंट और स्वादिष्ट देसी घी के भोजन की व्यवस्था देखते ही बनती थी और सबसे बड़ी बात यह है कि यहां मेडिकल की भी पूरी सुविधाएं मौजूद थी। अगर किसी कवडिये को किसी भी तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो तो डॉक्टर की व्यवस्था 24 घंटे अपना घर शालीमार सोसायटी में उपलब्ध करवाई गई। अलवर के प्रमुख समाजसेवी और समिति के डायरेक्टर अशोक सैनी ने बताया कि भगवान भोलेनाथ के प्रति उनकी अटूट आस्था है। वह पिछले कई वर्षों से कावड़ियों की सेवा के लिए स्पेशल कैंप लगाते हैं, जिसमें बेहतर से बेहतर सुविधा मुहैया करवाने का प्रयास किया जाता है। समाजसेवी अशोक सैनी का कहना था कि ईश्वर साक्षात दर्शन भले ही ना दे लेकिन नर में नारायण सेवा का भाव रखकर वह प्रतिवर्ष कावड़ियों की सेवा के लिए यह करते हैं। उन्होंने कहा कि विश्राम स्थल में प्रतिदिन लगभग 500 से 700 कावड़िये विश्राम करने पहुंचते हैं, वहीं शिवरात्रि के करीब आते-आते यह संख्या और अधिक बढ़ जाती है। बहरहाल, सावन के महीने में भोले बाबा ने बरसात कर मौसम को और सुहाना और भक्तिमय बना दिया, जिससे कावड़िये ठंडे़ और सुहावने मौसम में अपने-अपने गृह क्षेत्र में सुगमता से पहुंचकर हरिद्वार से जल लेकर भगवान शिव को स्नान करवाया।